मुंबई कोविड-19 महामारी (Covid-19 pandemic) के कारण पैदा हुई अनिश्चितता से लोगों का नकदी यानी कैश के प्रति रुझान बढ़ा है और कई परिवारों ने अपने घरों में भारी मात्रा में नकदी रखी है। इससे 2019-20 में करेंसी टु जीडीपी रेश्यो बढ़कर नोटबंदी के पहले के 12 फीसदी के स्तर पर पहुंच गया। आरबीआई ने 2019-20 की अपनी सालाना रिपोर्ट में यह जानकारी दी। यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई। 20 मार्च के बाद से बढ़कर 26.9 लाख करोड़ हो गई। लॉकडाउन शुरू होने के बाद से इसमें 10 फीसदी की तेजी आई है। 31 मार्च को 24.5 लाख करोड़ की करेंसी सर्कुलेशन में थी जो 14 अगस्त को बढ़कर 26.9 लाख करोड़ पहुंच गई। साथ ही पिछले दो सालों में सर्कुलेशन में 2000 रुपये के नोटों में तेज गिरावट आई है। लोगों के पास नकदी की मात्रा में पिछले कुछ महीनों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। 28 फरवरी को यह 11.3 फीसदी थी और मार्च के अंत में 14.5 फीसदी पहुंच गई। जून में यह आंकड़ा 21.3 फीसदी पहुंच गया। फाइनेंशियल सेविंग्स भी प्रभावित इस दौरान करेंसी टु बैंक डिपॉजिट रेश्यो भी 15.1 फीसदी से बढ़कर 16.1 फीसदी पहुंच गया। कोरोना संक्रमण के बाद से इक्विटी और म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट में गिरावट से लोगों की फाइनेंशियल सेविंग्स भी प्रभावित हुई है। आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश में कोरोना के मामले बढ़ने से लोगों ने भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए नकदी जमा करना शुरू कर दिया। इसे विडंबना ही कहा जाएगा की करेंसी में बढ़ोतरी ऐसे समय हो रही है जब डिजिटल ट्रांजैक्शन भी हर महीने नए रेकॉर्ड बना रहा है। पिछले महीने यूपीआई ट्रांजैक्शन की संख्या 150 करोड़ पहुंच गई थी। दुनिया के कई देशों खासकर उभरती इकॉनमीज में इसी तरह का रुझान देखने को मिल रहा है। ब्राजील, चिली, भारत, रूस और तुर्की में करेंसी सर्कुलेशन में काफी तेजी आई है।
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