GST मुआवजा: राज्य या केंद्र, कोई करे भरपाई, पर जून 2022 तक 'कटेगी' आपकी जेब

नई दिल्लीजीएसटी (Goods And Services Tax) काउंसिल की 41वीं बैठक में तीन लाख करोड़ रुपये के घाटे की भरपाई को लेकर अहम चर्चा हुई। वित्त मंत्री () ने राज्यों को मिलने वाले जीएसटी मुआवजा और कई प्रॉडक्ट पर जीएसटी रेट्स रिविजन को लेकर कई जानकारी दी। हालांकि, उनके भरपाई करने वाले आइडिया को लेकर राज्य और केंद्र सहमत नहीं हैं। दरअसल, कोरोना के कारण केंद्र और राज्यों की कमाई काफी घट गई है। इस बारे में केंद्र का कहना है कि राज्य बाजार से कर्ज उठाए, जबकि राज्यों का कहना है कि यह काम केंद्र करे। जून, 2022 तक उपकर इस तरह से केंद्र और राज्य सरकार में तो सहमति अभी तक नहीं बनी है, लेकिन यह स्पष्ट है कि उपभोक्ताओं को अतिरिक्त उधारी का बोझ वहन करना होगा, क्योंकि कारों, सॉफ्ट ड्रिंक्स, पान मसाला, तंबाकू और कोयले पर लगाए गए मुआवजे के उपकर को वर्तमान समय सीमा जून, 2022 तक लागू किया जाएगा। यह कितना समय तक होता है यह उधार की राशि और ब्याज पर निर्भर करेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में चलने वाली पांच घंटे की जीएसटी परिषद की बैठक में हालांकि दर में वृद्धि के मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई। इसके बावजूद कुछ वस्तुओं पर अधिक मुआवजा उपकर या अधिक उत्पादों को शामिल करने की बात से इनकार नहीं किया गया। उपकर का नर्णय ठीक, लेकिन समय सीमा पूर्वनिर्धारित होइस बारे में डेलोइट इंडिया में पार्टनर एमएस माली ने कहा- उपकर में कमी के लिए किसी भी दर में वृद्धि पर विचार नहीं करना एक स्वागत योग्य उपाय है। हालांकि, बाजार उधार के लिए आगे बढ़ रहा है, जो पांच साल से अधिक समय तक के लिए हो सकता है। वर्तमान मुआवजे की कमी को पूरा करने के लिए उपकर को पांच साल से आगे बढ़ाने का कोई भी निर्णय एक मिसाल बन सकता है, लेकिन उपकर समय सीमा कम से कम और पूर्वनिर्धारित होनी चाहिए। जिससे कि यह किसी तरह का स्थाई 'सब टैक्स' न बन जाए। इसलिए घटा जीएसटी मुआवजामीटिंग के दौरान वित्त सचिव अजय भूषण पांडे ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों के लिए केंद्र के पास 1.5 लाख करोड़ रुपये की अवैतनिक देनदारियां हैं। बता दें कि कोरोना के दौरान अप्रैल से जुलाई महीने के बीच जीएसटी मुआवजे के रूप में 1.5 लाख करोड़ रुपये जमा करने थे। लेकिन सच्चाई ये है कि अप्रैल और मई के महीने में सरकार की कमाई ना के बराबर रही। फॉर्मूले से संतुष्ट नहीं बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र और दिल्लीहालांकि, विपक्ष शासित राज्यों ने कहा कि वे फॉर्मूले से संतुष्ट नहीं हैं और उन्होंने जोर दिया कि केंद्र को उधार लेना चाहिए। पश्चिम बंगाल एफएम अमित मित्रा ने कहा, 'बैठक अनिर्णायक थी। सवाल यह है कि किसे उधार लेना चाहिए। केंद्र के पास उधार लेने की अधिक क्षमता है। वह अधिक कर्ज देने की क्षमता रखता है।' पंजाब एफएम के मनप्रीत बादल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐसे ही विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा- केंद्र उधार देगा और यह राशि क्षतिपूर्ति उपकर से चुका दी जाएगी जो 2-3 और वर्षों तक जारी रहेगी। यह पंजाब को स्वीकार्य नहीं है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि मौजूदा प्रशासनिक सेटअप के तहत, दिल्ली सरकार आरबीआई से ऋण नहीं ले सकती है और केंद्र को 21,000 करोड़ रुपये के घाटे को पूरा करने के लिए ऐसा करना चाहिए। उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने महाराष्ट्र और अन्य राज्यों का बचाव करते हुए स्पष्ट किया कि वित्तीय बाधाओं के कारण राज्यों के लिए ऋण लेना संभव नहीं है। जबकि केंद्र सरकार को कम ब्याज पर कर्ज मिल सकता है। यदि राज्य उच्च ब्याज दरों पर उधार लेते हैं, तो यह उपकर को अनावश्यक रूप से प्रभावित करेगा और अंतिम बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। उन्होंने इस तथ्य की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट किया कि यदि राज्य खुले बाजार से ऋण लेने की कोशिश करते हैं, तो आशंका है कि ब्याज दरें बढ़ जाएंगी और ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो जाएगा। 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी की आशंकाचालू वित्त वर्ष (2020-21) में जीएसटी कलेक्शन में 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी की आशंका है। दरअसल मुआवजे के रूप में जरूरत 3 लाख करोड़ की है, लेकिन सेस से होने वाली कमाई 65 हजार करोड़ संभावित है। इसलिए यह राशि 2.35 लाख करोड़ है। इसमें से केवल 97,000 करोड़ रुपये की कमी का कारण जीएसटी क्रियान्वयन है। जीएसटी कंपेनसेशन कानून के मुताबिक, राज्यों को मुआवजा दिए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र ने राज्यों को जीएसटी कंपेनसेशन के रूप में 1.65 लाख करोड़ रुपये दिए। इसमें मार्च में दिए गए 13806 करोड़ भी शामिल है। वित्त वर्ष 2019-20 में सेस कलेक्शन 95444 करोड़ रहा। ये हैं दो विकल्पमुआवजे की भरपाई को लेकर जो दो विकल्प दिए गए हैं उसमें पहला विकल्प ये है कि राज्यों को रिजर्व बैंक से 97000 करोड़ का स्पेशल कर्ज मिलेगा जिसपर इंट्रेस्ट रेट काफी कम लगेगा। दूसरा विकल्प ये है कि पूरा 2.35 लाख करोड़ का गैप राज्यों द्वारा रिजर्व बैंक की मदद से वहन किया जाएगा। इसके लिए राज्यों ने सात दिन का समय मांगा है।


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