नई दिल्ली रिजर्व बैंक (RBI) का मानना है कि कोविड संकट का देश की इकॉनमी पर बड़ा असर पड़ा है और इसे फिर से ट्रैक पर आने में वक्त लगेगा। आरबीआई ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने के लिए सरकार को इनवेस्टमेंट और रिफॉर्म की रफ्तार बढ़ानी होगी। सरकार को साफ नीति और तेज सुधारों के साथ आगे बढ़ना होगा। अभी सरकारी और निजी निवेश बढ़ाने की जरूरत है। आरबीआई ने साल 2019-20 (जुलाई-जून) की अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि प्रवासी मजदूरों की दिक्कतों और रोजगार घटने से ग्रोथ पर असर पड़ा है। पहले की तरह डिमांड लौटने में समय लगेगा। रिजर्व बैंक के अनुसार, जहां एक तरफ राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है, वहीं बैकों के बैड लोन यानी एनपीए में बहुत अधिक बढ़ोतरी हो सकती है। रिजर्व बैंक के अनुसार, साल 2020-21 में भारत की जीडीपी ग्रोथ नेगेटिव रह सकती है यानी जीडीपी 4.5 फीसदी घट सकती है। इनवेस्टमेंट में सुस्तीरिजर्व बैंक ने रिपोर्ट में कहा है कि कोविड संकट के कारण आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। इससे उत्पादन और सप्लाई चेन पर असर पड़ा। लागत में कटौती के कारण खर्चों में कमी आई। निवेश सुस्त हो गया। रिपोर्ट में कहा गया कि दूसरी तिमाही में भी आर्थिक गतिविध पर कोविड संकट का असर दिखेगा। ग्रॉस इनकम में कमीरिपोर्ट में बताया गया है कि 2019-20 में आरबीआई की ग्रॉस इनकम पिछले साल की इसी अवधि के 1.95 लाख करोड़ रुपये से घटकर 1.50 लाख करोड़ रुपये रही। 30 जून तक आरबीआई के पास कुल जमा 11.76 लाख करोड़ रुपये थे। रिजर्व बैंक ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) के तहत सरकारी प्रतिभूतियों की साथ-साथ खरीद और बिक्री करेगा। दो चरणों में 20,000 करोड़ रुपये की प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री की जाएगी। नीलामों दो चरणों में 27 अगस्त और 3 सितंबर को की जाएगी। राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी रिजर्व बैंक ने कहा कि सरकार को आने वाले वर्षों में राजकोषीय घाटे को तय लक्ष्य के भीतर रखने में काफी मश्क्कत करनी पड़ेगी। देनदारियां भी 2019-20 (संशोधित अनुमान) में बढ़कर जीडीपी का 70.4 फीसदी हो गई हैं जो 2018-19 में 67.5 फीसदी थीं।
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