खेती में निजी निवेश से प्रतिस्पर्धा बढ़ने से किसान, उपभोक्ता दोनों को फायदा होगा : ताजावुल हक

(राजेश अभय) नयी दिल्ली, सात जून (भाषा) खेती में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने और देश के किसी भी हिस्से में लाभ के साथ अपनी उपज बेचने के संबंध में कानूनी बाधाओं को खत्म करने के केन्द्रीय मंत्रिमंडल के हाल के फैसले को कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष ताजावुल हक ने उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के हित में बताया है। हक ने भाषा के साथ विशेष बातचीत में कहा कि सरकार के इस फैसले से खेती के कामकाज में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को ही लाभ मिलेगा। केन्द्रीय मंत्रिमंडल की जून के पहले सप्ताह में हुई बैठक में खेती के कामकाज में सुधार लाने और भंडारगृह, आधुनिक उपकरणों के उपयोग एवं आधारभूत ढांचे आदि के विकास के लिए निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के मकसद से कुछ अहम फैसले लिए हैं। किसानों को अब सुविधा दी गई है कि देश के किसी भी भाग में जहां अच्छी कीमत मिले, वहां वे अपनी उपज को बगैर किसी दिक्कत के बेच सकें। किसी व्यापारिक संस्थान से बिजाई के पहले उपज की खरीद सुनिश्चित करने का अनुबंध कर सकें। इस काम में जो कानूनी अड़चनें थीं, उसको दूर करते हुए एक सुस्पष्ट कानूनी ढांचा प्रदान किया गया है। हक ने कहा कि बाजार सुधार के काम पर 2003 से ही विचार चल रहा था और कुछ राज्यों ने इस संदर्भ में सुधारात्मक उपाय भी किये। ठेका खेती के संदर्भ में पहले भी कानून था कि कोई किसान फसल उत्पादन के बारे में अनुबंध कर सके। लेकिन इसमें विवाद निपटान का तंत्र उपयुक्त नहीं था और उसमें बड़े व्यापारी द्वारा हेर-फेर किये जाने और विवाद निपटान क्षेत्र को प्रभावित किये जाने की गुंजाइश होती थी। इसके अलावा कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) में खाद्य जिंसों की बिक्री के लिए वहां पंजीकृत होना पड़ता था और किसान चाहे भी तो कहीं बाहर अपने उत्पाद बेच नहीं सकता था। अब सरकार के इस फैसले के बाद किसान अपनी उपज बिना किसी कानूनी अड़चन के देश के उस भाग में बेच सकेगा जहां उसके अच्छी कीमत मिलेगी। उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से सरकारी तंत्र के एकाधिकार की स्थिति खत्म होगी और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को ही फायदा पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि बड़े व्यापारिक घरानों और कंपनियों के साथ अनुबंध सिर्फ फसल को लेकर होगा और किसानों की जमीन उनके पास ही रहेगी। किसानों को सुनिश्चित खरीद और बाजार का लाभ मिलेगा जबकि निजी निवेशक को खाद्य जिंसों की सुनिश्चित आपूर्ति संभव होगी। इसके अलावा मौजूदा व्यवस्था में संस्थागत विवाद निपटान तंत्र होने से ज्यादा विवाद होने की संभावना नहीं है। एपीएमसी के भविष्य को लेकर पूछे गये सवाल पर उन्होंने कहा कि इसे रहना चाहिये और निजी क्षेत्र को भी आना चाहिये। निजी क्षेत्र को देश में और भी मंडियां खोलने की जरूरत लगे, तो वो ऐसा कर सकते है, उन्हें कोई दिक्कत नहीं आयेगी। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून सहित मध्याह्न भोजन जैसी तमाम कल्याणकारी योजनाओं पर सरकार के ताजा फैसलों के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा के लिए वितरण, तमाम कल्याणकारी योजनाओं को होने वाले आवंटन बदस्तूर जारी रहेंगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) जैसी व्यवस्थाएं भी जारी रहेंगी। केवल किसानों को अपनी उपज स्थानीय मंडी में बेचने की बाध्यता को समाप्त किया गया है। कानून की सफलता को लेकर आशंकाओं के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘अगर सरकार मजबूत हो, प्रशासन दुरुस्त हो और लागू करने वाले की मंशा दुरुस्त और पारदर्शी हो तो कोई दिक्कत नहीं आयेगी। अगर कहीं गड़बड़ी दिखे तो ऐसे मौके पर सरकार को हस्तक्षेप करना जरूरी होगा। सारे प्रशासनिक तंत्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि जमाखोरी न होने पाये और सट्टेबाजी पर अंकुश लगे। पूरी व्यवस्था में कोई गड़बड़ी न होने पाये, इसके लिए कानून में दंड और जुर्माने का भी प्रावधान होना चाहिये। इन फैसलों का खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ने की आशंका के बारे में हक ने कहा, ‘‘बाजार में प्रतिस्पर्धा के माहौल के कारण खाद्य वस्तुयें सस्ती भी होंगी। सरकारी खरीद तंत्र और निजी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा के बढ़ने से उपभोक्ताओं को सामान अच्छा और सस्ता मिलने की संभावना है। इस पहल से उपभोक्ता और उत्पादक किसान दोनों को ही फायदा होगा। उन्होंने कहा कि एमएसपी की व्यवस्था बरकरार रहेगी। लेकिन यह भी देखा गया है कि एमएसपी का लाभ केवल 10 से 12 प्रतिशत किसानों को ही मिल पाता है लेकिन अब उत्पादक मनपसंद मंडी में अपने उत्पाद की बिक्री कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए कोई और पक्ष उपस्थित होने से किसानों को एमएसपी से अधिक कीमत की मिलने की संभावना है।


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