शिप्रा फडनिस, बेंगलुरु सोमवार रात से लापता सीसीडी के फाउंडर वीजी सिद्धार्थ का शव मिला है। अचानक उनके गायब हो जाने से उन्हें जानने वालों को हैरान कर रहा है। सिद्धार्थ एकांत प्रेमी थे और उन्होंने इतना बड़ा कन्ज्यूमर ब्रैंड खड़ा किया। हालांकि, लापता होने से पहले के उनके आखिरी लेटर और उनके हाल के दिन कैसे बीते, यह पता चलता है कि वह परेशान थे। ज्यादा दिन नहीं बीते। इसी महीने की शुरुआत में एक रीयल्टी कंपनी के सीईओ मुंबई के ताज लैंड्स एंड स्थित कैफे कॉफी डे के फाउंडर वीजी सिद्धार्थ और उनके बेटे अमर्त्य से मिले थे। उस वक्त सिद्धार्थ ने उन्हें बताया था कि कैसे कोलंबिया बिजनस स्कूल से पढ़ा युवा इनकम टैक्स से जुड़े मामले सुलझाने के गुर सीख रहा है। इसी से अंदाजा लगा जा सकता है कि हाल के कुछ महीनों में कॉफी किंग कहे जाने वाले सिद्धार्थ कितनी पीड़ा में थे। सिद्धार्थ अपने आप में रहने वाले शख्स थे और पब्लिक के सामने आने में काफी झिझकते थे, लेकिन लापता होने से पहले उन्होंने ज्यादातर लोगों से मुलाकात कर ली। वह मीडिया इंटरव्यू नहीं देते थे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एसएम कृष्णा के दामाद होने के बावजूद उनके फंक्श्न्स का हिस्सा नहीं बनते थे। चाहे उनके शपथग्रहण का समारोह ही क्यों न रहा हो, वह उसमें शरीक नहीं हुए थे। सिद्धार्थ एक अमीर परिवार से थे, जिन्होंने एक बड़ा कन्ज्यूमर ब्रैंड तैयार किया और अरबपति बन गए। आज देशभर में सिद्धार्थ के इस ब्रैंड के 2100 स्टोर्स हैं। सिद्धार्थ ने इंडिया की पहली पॉप्युलर कैफे चेन कैफे कॉफी डे की शुरुआत 1994 में बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड इलाके में की थी। अपने पहले प्यार कॉफी को लेकर वह काफी पैशनेट थे और चाय पीने वाले भारतीय बाजार में तकॉफी के प्रति प्रेम जगाना चाहते थे। इस काम में सफल भी हुए और इस काम में उनकी मदद की चिकमंगलूर ने, जहां 1870 से उनका परिवार कॉफी का उत्पादन करता था। वहां उनका 550 साल पुराना पुश्तैनी मकान भी है। जब उनके पिता और अंकल के बीच प्रॉपर्टी का बंटवारा हुआ तब उन्होंने 90,000 रुपये में 49 एकड़ जमीन कर ली थी। हालांकि, 1992 में सिद्धार्थ ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई और 3500 एकड़ जमीन खरीद ली। आज उनके और उनके परिवार के पास कुल मिलवाकर 18,000 एकड़ के कॉफी एस्टेट्स हैं। 1990 के दशक में जब कॉफी बोर्ड ने कॉफी में फ्री ट्रएड को मंजबर किया तो उन्होंने कॉफी का कारोबार करने की सोची। 1995 में उन्होंने बेंगलुरु और चेन्नै में कॉफी पाउडर बेचना शुरू कर दिया और पहला कैफे कॉफी डे आउटलेट 1996 में बेंगलुरु में एक साइबर कैफे के साथ खुला। पूर्व कॉफी बोर्ड चेयमैन जीवी कृष्णा राउ कहते हैं, 'सिद्धार्थ ने भारत और भारतीय कॉफी को वैश्विक पहचान दिलाई।' सिद्धार्थ ने अपने करियर की शुरुआत एक इक्विटी टेडर और ऐनालिस्ट के तौर पर की थी। वह जेएम मॉर्गन स्टेनले (जे एम फाइनैंशल) के साथ जुड़े थे। यहां वह निमेष कृपलानी के साथ काम करते थे। निमेष कंपनी के चेयरमैन हैं। मंगलवार को उन्होंने कहा, 'मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सिद्धार्थ ने ऐसा फैसला क्यों लिया होगा। वह बहुत खुशमिजाज और हॉस्टिबेल थे।' कैफे कॉफी डे के पूर्व सीईओ नरेश मल्होत्रा ने कहा, 'मैं सिद्धार्थ को 1988 से जानता हूं, जब वह स्टॉक ब्रोकर थे और उद्यमी नहीं थे। उनका व्यक्तित्व शानदार और मजबूत था। यह घटना तो उनके कैरेक्टर से मेल नहीं खाती।' सिद्धार्थ को याद करते हुए उनके कई दोस्तों ने बताया कि वह काफी नम्र स्वभाव के थे। करीबियों का शादी समारोह हो या शव यात्रा, वह चार्टर्ड फ्लाइट करने में हिचकते नहीं थे। अपने कॉफी डे स्क्वॉयर से निकलकर अपने दोस्तों को खुद लॉबी या लिफ्ट तक छोड़ने जाते थे, जो अन्य अरबपति उद्यमियों के बारे में कम ही सुना जाता है। एशिया की पहली कॉफी टेस्टर सुनालिनी मेनन कहता हैं, 'सिद्धार्थ ऐसे व्यक्ति, मानवता और विनम्रता जिनके साथ-साथ चलती थी।'
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