अब भारतीय बंदरगाहों पर नहीं चलेंगें चाइनीज टगबोट, सिर्फ भारत में बने ही काम कर पाएंगे

नई दिल्लीअब भारत के बड़े बंदरगाहों पर चाइनीज (Chinese) या किसी अन्य देशों के बने () नहीं चल पाएंगे। केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय (Unioun Ministry) ने फैसला किया है कि अब भारत के मेजर () पर सिर्फ भारत में ही बने टगबोट खरीदे या किराये पर लिये जाएंगे। इससे मेक इन इंडिया अभियान (Make In India) को तो धार मिलेगी ही, सुस्त पड़े भारतीय शिपयार्ड उद्योग (Shipyard Industry) को भी एक नई जान मिलेगी। अभी तक अधिकतर बंदरगाहों (Ports) पर चाइनीज टगबोट का ही दबदबा है। मंत्रालय ने जारी कर दिया है आदेश केंद्रीय मिनस्ट्री के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मंत्रालय ने सभी प्रमुख बंदरगाहों (Major Ports) को निर्देश दे दिया गया है। अब इन बंदरगाहों पर उन्हीं टगबोटों या कर्षण नावों (बड़े जहाजों को खींचने वाली मजबूत नाव) को खरीदने या किराये पर लिया जाएगा, जो भारत में बनी हो। इसी के साथ देश में शिंप बिल्डिंग इंडस्ट्री को बढावा देने के लिए इसमें अग्रणी कुछ देशों के साथ मंत्रालय चर्चा भी कर रहा है। क्या होता है टगबोट बंदरगाहों पर जब जहाज या आता है तो वह पहले हाई-सी में ठहर कर पोर्ट कंट्रोलर को सूचना देता है। वहां से बर्थ अलॉट होने के बाद पोर्ट की तरफ से टगबोट भेजा जाता है जो कि उसे बर्थिंग कराने में मदद करता है। जब जहाज अनलोडिंग या लोडिंग कर से वापस जाता है, तब भी टगबोट की मदद से ही वह हाई-सी में जाता है। यही नहीं, जब किसी जहाज में कोई इमर्जेंसी होती है, तब टगबोट ही मदद के लिए सबसे पहले पहुंचता है। मेक इन इंडिया के लिए कुछ देशों से होगा समझौता शिपिंग मिनिस्ट्री भारतीय जहाज निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। मेक इन इंडिया अभियान के तहत यहीं टगबोर्ड तथा जहाज निर्माण करने के लिए कुछ अग्रणी देशों के साथ चर्चा भी कर रहा है। ऐसा इसलिए, ताकि यहां भी उन्नत तकनीक से काम हो सके और गुणवत्तापूर्ण तरीके से तेजी से जहाजों का निर्माण हो सके। पुराने शिपयार्डों को किया जाएगा जीवित केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनसुख मांडविया का कहना है कि सरकार पुराने शिपयार्ड को पुनर्जीवित करने और भारत में जहाज निर्माण को बढ़ावा देने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि यह भारतीय जहाज निर्माण के पुनरुद्धार और आत्म-निर्भर भारत में आत्म-निर्भर पोत परिवहन को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। सरकार भारत में जहाज निर्माण, जहाज की मरम्मत, जहाज पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) और झंडी से सूचित करने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की कोशिश करेगी। आने वाले समय में आत्म-निर्भर पोत परिवहन एक प्रणाली बनने जा रहा है। अभी तक भारत इस दिशा में क्यों पिछड़ रहा है इस क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि भारतीय शिपयार्ड में जहाज या वेसल बनवाना कॉस्ट इफेक्टिव नहीं होता है। यहां एक तो लागत ज्यादा पड़ती है, साथ ही डिलीवरी की स्पीड भी स्लो है। इसके उलट आप चीनी शिपयार्ड कंपनी को आर्डर दें तो 15 दिन में टगबोट और डेढ़ से दो महीने में जहाज बना कर दे देते हैं। भारत में टगबोट बनाने में ही दो तीन साल लग जाता है। जहाज बनाने में लगने वाले वक्त की तो बात ही मत कीजिए।


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