दीपशिखा सिकरवार, नई दिल्ली फाइनैंस मिनिस्ट्री भले ही के रिजर्व पर नजर लगाए हुए हो, लेकिन हो सकता है कि उसे यह विंडफॉल गेन नसीब न हो। आरबीआई के सरप्लस के उपयोग के बारे में सिफारिश देने का जिम्मा संभाल रही इस रकम से सरकार के कर्ज में कमी लाने या बैंकों को पूंजी मुहैया कराने जैसे सार्थक उपयोग पर विचार कर रही है। इस समिति के सदस्यों के बीच भी मतभेद हैं। मतभेद दूर करने के लिए इसी महीने एक मीटिंग होगी, जिसके बाद समिति 16 जुलाई को अपनी रिपोर्ट दे सकती है। मामले से वाकिफ एक शख्स ने बताया कि अभी जिस योजना पर चर्चा चल रही है, उसके मुताबिक आरबीआई के सरप्लस से सरकार को मामूली रकम मिलेगी और वह भी एक बार में नहीं मिलेगी। इसका अर्थ यह है कि सरकार 5 जुलाई को पेश किए जाने वाले फाइनैंशल ईयर 2020 के बजट में आरबीआई रिजर्व की बड़ी रकम से कोई हिसाब नहीं बैठा सकेगी। सरकार इस रकम को बजट में शामिल करने की उम्मीद कर रही थी, लेकिन रिपोर्ट आने में देरी और समिति की राय ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। सूत्र ने बताया कि समिति में सरकारी सदस्य यानी फाइनैंस सेक्रेटरी सुभाष गर्ग ने दूसरे सदस्यों की राय पर ऐतराज जताया है, लेकिन ड्राफ्ट रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने से पहले सरकार की राय पुख्ता तरीके से रखने के नए प्रयास किए जा रहे हैं। ये मुद्दे औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय और गर्ग के सामने रखे गए हैं। सरकार ने इस संबंध में आरबीआई एक्ट के सेक्शन 47 का हवाला दिया था। सरकार ने इससे पहले जोर दिया था कि वह इकॉनमिक कैपिटल फ्रेमवर्क का रिव्यू ही चाहती है और उसकी नजर आरबीआई के फंड पर नहीं है। हालांकि यह मुद्दा दोनों के बीच विवाद का अहम बिंदु बन गया है। इसी मुद्दे पर फाइनैंस मिनिस्ट्री ने आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 के तहत आरबीआई से कंसल्टेशन की बात की थी। इस कदम को लेकर विवाद हो गया था और यह धारणा बनी थी कि सरकार आरबीआई की स्वायत्तता कम करना चाहती है। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार आरबीआई के कैपिटल फ्रेमवर्क पर चर्चा करना चाहती है, न कि फिस्कल डेफिसिट घटाने के लिए उसे इस पैसे की जरूरत है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर जालान की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति का गठन 26 दिसंबर, 2018 को आरबीआई के इकॉनमिक कैपिटल फ्रेमवर्क की समीक्षा करने के लिए किया गया था। इससे पहले इस मुद्दे पर आरबीआई और सरकार के बीच काफी बातचीत हुई थी। इस समिति में जालान और गर्ग के साथ आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एन. एस. विश्वनाथन के अलावा आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड के दो मेंबर भरत दोशी और सुधीर मांकड़ शामिल हैं।
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