मुंबई भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कुछ नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों (एनबीएफसी) और होम लोन कंपनियों से खतरे की चेतावनी दी है। यह संकट दूसरी एनबीएफसी तक पहुंच गया है। इसके साथ वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका और अमेरिका के कदमों से बढ़ी अस्थिरता को उसने मार्केट्स के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है। आरबीआई ने गुरुवार को जारी इस रिपोर्ट में एनबीएफसी और होम लोन कंपनियों की कड़ी निगरानी की बात कही है। कम हुआ बैंकिंग सिस्टम का रिस्क: RBI रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ बड़ी एनबीएफसी और होम लोन कंपनियां ऐसी अस्थिरता पैदा कर सकती हैं, जिसकी आशंका बड़े बैंकों से होती है। पिछले साल की तुलना में बैंकिंग सिस्टम का जोखिम काफी कम होने की बात भी इसमें कही गई है। रिपोर्ट में सरकारी बैंकों में रिफॉर्म पर जोर दिया गया है। आरबीआई ने कहा है, 'बैंकों में गवर्नेंस रिफॉर्म्स पर खासतौर पर ध्यान देना चाहिए।' अमेरिकी गतिविधियों का डर : RBI रिजर्व बैंक के गवर्नर ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा है, 'सरकारी बैंकों को मार्केट डिसिप्लीन के जरिए निजी पूंजी आकर्षित करनी चाहिए, न कि उसे इसके लिए सरकार पर आश्रित रहना चाहिए।' आरबीआई ने कहा है कि अमेरिकी कदमों के चलते उभरते बाजारों और विकासशील देशों के सामने चुनौती खड़ी हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, 'अभी दुनिया की जो हालत है, उसमें अमेरिका की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों से उभरते बाजारों और विकासशील देशों की वित्तीय स्थिरता तय होगी। इसमें महंगाई दर सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है।' NBFC का संकट पिछले साल IL&FS के पेमेंट डिफॉल्ट के बाद से फाइनैंशल मार्केट्स में उथलपुथल मची हुई है। इसी वजह से म्यूचुअल फंडों ने कई एनबीएफसी को उधार देना बंद कर दिया। अब कुछ एनबीएफसी कर्ज चुकाने के लिए अपनी संपत्ति बेच रही हैं। रिजर्व बैंक के कर्ज सस्ता करने के बावजूद एनबीएफसी के लिए उधार महंगा हो गया है। जब बैंक बैड लोन से त्रस्त थे, तब उनकी कीमत पर एनबीएफसी ने बाजार बढ़ाया था। अब बैंकों की बिजनस बढ़ाने की बारी है। भारतीय बैंकिंग सिस्टम कई साल के बाद अच्छी हालत में दिख रहा है। उसके बैड लोन में कमी आई है। इसमें प्रविजन कवरेज बढ़ने और सरकार के पब्लिक सेक्टर के बैंकों की फंडिंग का बड़ा रोल रहा है।
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