फ्रैंकलिन टेम्पलटन के 6 फंड बंद करने से निवेशकों के 30 हजार करोड़ रुपये खतरे में

नई दिल्ली () ने करीब 31000 करोड़ के असेट फ्रीज कर दिए हैं। ये सब महामारी के चलते यूनिट वापस लेने के दबाव और बॉन्ड बाजार में तरलता की कमी का हवाला देकर किया गया है। फ्रैंकलिन दुनिया के सबसे बड़े फंड हाउस में से एक है, जिसकी भारतीय शाखा ने करीब 6 फंड बंद कर दिए हैं। ये फंड उन सेक्टर्स में बेहद बुरी हालत में थे, जो इन दिनों निगेटिव वजहों से चर्चा में बने हुए थे। करीब 76 फीसदी फंड हुआ फ्रीज इन फंड का नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों में करीब 14,564 करोड़ रुपए का एक्सपोजर है। इसके अलावा 5,532 करोड़ रुपए का एक्सपोजर पावर सेक्टर में है और 3480 करोड़ रुपए इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल्टी सेक्टर में है। एक फाइनेंशियल डेटाबेस मैनेजर एकॉर्ड फिनटेक के पास मौजूद डेटा के अनुसार कुल फंड का 23,567 करोड़ यानी 76.41 फीसदी फ्रीज हो गया है। पहले से ही दिक्कत में थीं इस सेक्टर की कंपनियां विशेषज्ञों का कहना है कि इन सेक्टर्स की कंपनियों के डेट पेपर्स बहुत ही बुरी हालत में हैं, बावजूद इसके कि ये कंपनियां लॉकडाउन के असर को कम करने की तमाम कोशिशें कर रही हैं। इतना ही नहीं, यह कंपनियां तो लॉकडाउन शुरू होने से पहले से ही पैसों की दिक्कत से जूझ रही थीं। रेसिडेंशियल डेवलपर्स को लोन देते हैं एनबीएफसी क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर सचिन गुप्ता ने कहा कि एनबीएफसी की तरफ से उन रेसिडेंशियल डेवलपर्स को कर्ज दिया जाता है, जिनके बैंक उन्हें लोन देने से कतराते हैं। ऐसे में इन रेसिडेंशियल डेवलपर्स से पैसे इकट्ठा करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। एक्यूट रेटिंग्स के अनुसार एनबीएफसी का फंड गैप 50-60 हजार करोड़ रुपये का हो गया है। अगर जल्द से जल्द ये गैप भरा नहीं गया तो एनबीएफसी और माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूटशंस के लिए कर्जदारों को पैसे चुकानों में भारी दिक्कत हो सकती है, जिनमें फ्रैंकलिन भी है। लंबा चला ये सब तो कमर्शियल डेवलपर्स को भी होगी परेशानी फ्रैंकलिन ने अपने फंड बंद करते हुए कहा कि वह अपने निवेशकों को पेपर्स मैच्योर होने पर भुगतान करेगा और फंड हाउस ने पैसों का इंतजाम करने की व्यवस्था कर ली है। सचिन गुप्ता कहते हैं कि बिल्डर्स में कमर्शियल डेवलपर्स अभी सही स्थिति में हैं, क्योंकि उनके अधिकतर किराएदार बड़ी आईटी कंपनियां और बीएफएसआई कंपनियां हैं। लेकिन अगर यही स्थिति 3-6 महीने तक चली, तो कमर्शियल डेवलपर्स को भी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। लॉकडाउन की शुरुआत होते ही पावर की मांग तेजी से घटी है, क्योंकि कमर्शियल काम पूरी तरह से बंद हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह से डिस्कॉम यानी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों के रिवेन्यू पर असर पड़ेगा।


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