एम सी गोवर्धन रंगनवॉट्सऐप पर आनेवाले फॉरवर्डेड मेसेज आमतौर पर कूड़ा होते हैं, लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कभी-कभा ‘ज्ञान के मोती’ भी आ गिरते हैं। कुछ मोती हाल में ऐसे शख्स की तरफ से आए जो शायद बाजार पर करीब से नजर रख रहा है। उसमें कोई सूक्ति नहीं थी और न ही उसमें बाजार का ताजा हाल बताने वाले फाइनेंशियल रेशियो पर बांचा गया ज्ञान था। उसमें कंपनियों को दो ग्रुप में बांटने वाला एक टेबल था, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग होंगे जो इससे ज्ञान का अमृत निकाल सकें। लो और हाई पर पहुंचे शेयरों की लिस्ट आइए देखते हैं कि टेबल में क्या था। इसके बाएं कॉलम में 52 वीक लो पर ट्रेड कर रहे फाइनेंशियल स्टॉक्स (बैंक, और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां) तो दायीं तरफ 52 वीक हाई पर चल रहे स्टॉक्स थे। जो लोग इकनॉमी का हाल जानना चाहते हैं, उन्हें यह टेबल जरूर देखना चाहिए। बायीं तरफ के कॉलम में यस बैंक, इंडसइंड बैंक, जेऐंडके बैंक और थे, जबकि दाईं तरफ बैंक, ऐक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और सिटी यूनियन बैंक थे। NBFC के गिरते और बढ़ते शेयर जहां तक एनबीएफसी की बात है तो उनकी लिस्ट में बाईं तरफ पिरामल एंटरप्राइजेज, इडलवाइज, आदित्य बिड़ला कैपिटल तो दायीं तरफ बजाज फाइनेंस, मुथूट फाइनेंस, सुंदरम फाइनेंस और चोलामंडलम थीं। मेसेज में पिछले कुछ साल से निवेशकों की चहेती बनी होम फाइनेंस कंपनियों की भी ऐसी ही लिस्ट थी। बायीं तरफ इंडियाबुल्स, रिलायंस होम, और पीएनबी हाउसिंग थीं तो दायीं तरफ एचडीएफसी, आवास और केनफिन जैसी विनर कंपनियां थीं। क्यों फंसी ये कंपनियां? यह बात तो साफ है कि इन टेबल्स में एक तरफ खराब तो दूसरी तरफ अच्छी कंपनियां हैं। भले ही निवेशकों को वर्गीकरण करने में समय लगा हो, लेकिन अब यह सामने है। यस बैंक में गवर्नेंस इश्यू हैं, निवेशक इसके बही खाते पर सवाल उठा रहे हैं। इंडसइंड बैंक लेंडिंग के कुछ जोखिम भरे फैसलों के चलते फंसा है। जेऐंडके बैंक और पीएनबी के साथ भी कुछ ऐसी ही दिक्कत है। लेकिन रिकॉर्ड हाई पर ट्रेड कर रहे आईसीआईसीआईस बैंक और ऐक्सिस बैंक जैसे लेंडर्स के साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं है और जो थीं, दूर हो गई हैं। NBFC में किसका, क्या हाल? इंडियाबुल्स, डीएचएफएल और रिलायंस होम जैसी हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों के साथ कथित फंड डायवर्जन (बाद में कोर्ट पिटीशन वापस हो गया) सहित कई गवर्नेंस इशू हैं। निवेशकों ने सुंदरम फाइनैंस, बजाज फाइनैंस और मुथूट फाइनैंस को फाइनैंशल रेशियो के पीछे भागने के बजाय बिजनस को सही तरीके से मैनेज करने पर उनके फोकस का इनाम दिया है। सरकार से राहत पैकेज नहीं मिलने के चलते सॉलिड बिजनस, लेकिन ऐसेट लाइबिलिटी मिसमैच वाली कंपनियां सही रास्ता पकड़ने की कोशिश में जुटी हैं। यूं खुद का इलाज कर रहीं संकट में फंसी कंपनियां पिरामल एंटरप्राइजेज ने कारोबारी सफर में ग्रोथ और फाइनैंशल इंजिनियरिंग का घातक कॉकटेल बना लिया था। उसकी लोन बुक 2012 के 350 करोड़ रुपये से बढ़कर पिछले वित्त वर्ष में ₹56,624 करोड़ हो गई थी। इसमें से एक तिहाई की फंडिंग कमर्शल पेपर के जरिए हुई थी। इसका 64% रियल एस्टेट लोन इलिक्विड कंस्ट्रक्शन में फंसा था जबकि होम लोन सिर्फ 9% था। आईएलऐंडएफएस में संकट होने के साथ ही अजस्टमेंट शुरू हो गया, कमर्शल पेपर्स ₹18,000 करोड़ से घटकर ₹8,900 करोड़ रह गए हैं। इसने दो तिमाहियों में एक साल से ज्यादा के इंस्ट्रूमेंट से ₹16,500 करोड़ जुटाए हैं, सरकारी संस्थानों से 7-10 साल का फंड जुटाने की प्रक्रिया में है। श्रीराम ग्रुप में अपनी होल्डिंग किसी स्ट्रैटिजिक इन्वेस्टर को बेचने की जुगत में लगे अजय पिरामल उसे इसी हफ्ते श्रीराम ट्रांसपोर्ट के हाथों ₹2,300 करोड़ में बेच दिया। डीएचएफएल जैसी रिटेल ऐसेट वाली कंपनियां पोर्टफोलियो बेचकर पैसा जुटा रही हैं, जबकि रिलायंस होम और रिलायंस कैपिटल एएमसी बिजनस बेच रही है। यह इंडियन फाइनैंशल मार्केट के इतिहास में रीअजस्टमेंट का सबसे बड़ा पीरियड होगा, जो किसी सरकारी राहत पैकेज के बिना हो रहा है।
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