सुगाता घोष, मुंबई पंजाब ऐंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक (PMC) के मैच्योर हो रहे लेटर ऑफ क्रेडिट (LC) के रिपेमेंट को लेकर कुछ बैंकों ने बैंकिंग रेग्युलेटर के सामने चिंता जताई है। देश के सबसे बड़े शहरी कोऑपरेटिव बैंकों में शामिल PMC लेटर ऑफ क्रेडिट जारी करने के मामले में आगे रहा है। इसके रेग्युलर क्लाइंट्स की लिस्ट में मुंबई हेडक्वॉर्टर वाली एक स्टील कंपनी भी है, जिसके साथ उसके पुराने रिश्ते हैं। मार्च 2019 को बैंक की टोटल कंटिंजेंट लायबिलिटी यानी ऑफ बैलेंस शीट आइटम लगभग 1,721 करोड़ रुपये थी। कोऑपरेटिव बैंक ने लगभग 176 करोड़ रुपये के लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किए हैं, जिसे दूसरे बैंकों ने डिस्काउंट किया है। इनके भुगतान की तारीख करीब आ रही है। बैंकों ने का खींचा ध्यान इस मामले के जानकार एक सूत्र ने ईटी से बातचीत में कहा, 'कुछ कोऑपरेटिव बैंकों सहित कई बैंकों ने आरबीआई का ध्यान कुछ लेटर ऑफ क्रेडिट की तरफ आकर्षित किया है, जिनके पेमेंट की तारीख करीब आ रही है। PMC उनका पेमेंट नहीं कर सकता, इसलिए उन्हें डिस्काउंट करने वाले बैंकों पर चोट पड़ेगी। कई कोऑपरेटिव बैंकों पर छोटा डिफॉल्ट भी बहुत भारी पड़ सकता है।' लेटर ऑफ क्रेडिट की शर्तों के मुताबिक, PMC को उनकी मियाद खत्म होने पर बैंकों को रिपेमेंट करना होगा। लेटर ऑफ क्रेडिट आमतौर पर 60 से 90 दिनों के होते हैं, जिनका इस्तेमाल ट्रेड फाइनैंस के लिए होता है। इसमें सप्लायर का बैंक कस्टमर के पेमेंट के लिए इंस्ट्रूमेंट को डिस्काउंट करता है और सामान की खरीदारी करने वाली कंपनी के बैंक से कुछ महीनों बाद पैसों की रिकवरी करता है। पढ़ें : PCM की कंटिंजेंट लायबिलिटी बैलेंसशीट से ज्यादा इंडस्ट्री के जानकार ने कहा, 'PMC नॉस्ट्रो अकाउंट, एनआरआई अकाउंट और फॉरेंसी करेंसी में डील करने वाला कैटेगरी I ऑथराइज्ड डीलर था, लेकिन इसके ज्यादातर डिस्काउंटेड बिल लोकल हो सकते हैं। PCM की कंटिंजेंट लायबिलिटी इसकी बैलेंसशीट के साइज से ज्यादा है। यह बैंक गारंटी दे सकता था और फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट इश्यू कर सकता था। दूसरे बैंक, खासतौर पर कोऑपरेटिव बैंक, जिन्होंने बैंक के लेटर ऑफ क्रेडिट को डिस्काउंट किया था या जिन्होंने PMC में पैसा जमा कराया था, वे फिक्रमंद हैं।' पढ़ें : जांच के बाद मामला होगा साफ फिलहाल यह साफ नहीं है कि क्या इनमें से कुछ बोगस लेटर ऑफ क्रेडिट थे, जिसे किसी तरह के गुड्स मूवमेंट का सपोर्ट हासिल नहीं था। बैंकिंग शब्दावली में इसे ट्रेड ट्रांजैक्शन हुए बिना लेटर ऑफ क्रेडिट को एकोमोडेशन करना कहा जाता है। ये एकोमोडेशन ट्रेड सामान्य तौर पर ऐसे बिल की एक से ज्यादा बैंकों के जरिये डिस्काउंटिंग कराने के मकसद से किए जाते हैं। हालांकि, इसका पता तभी चल पाएगा जब की इंस्पेक्शन पूरी हो जाएगी। पढ़ें : बढ़ सकती है बैंक से विदड्रॉल की लिमिट माना जा रहा है कि आरबीआई कोऑपरेटिव बैंक से विदड्रॉल की लिमिट मौजूदा 10,000 रुपये से बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है। बैंकिंग रेग्युलेटर ने पिछले हफ्ते इस लिमिट को 1,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया था। 11,000 करोड़ रुपये के डिपॉजिट वाले बैंक के 63% डिपॉजिटर्स ऐसे हैं, जिनके खातों में 10,000 रुपये से कम हैं और कुल जमा सिर्फ 915 करोड़ रुपये है।
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