नई दिल्ली/गुरुग्राम/मुंबई/बेंगलुरु कोरोना वायरस के असर से उभर रहे आर्थिक संकट के दौरान सरकार ने कामगारों का नहीं रोकने का जो निर्देश दिया था, उसका पालन करना कंपनियों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। कुछ मामलों में तो कंपनियां इसका पालन करने की स्थिति में ही नहीं रह गई हैं। कंपनियों का कहना है कि उनकी आमदनी घट रही है या बिल्कुल ही आमदनी नहीं हो रही है और लोन माफी जैसे उपायों से इसकी भरपाई भी नहीं की जा रही है। इंडस्ट्री मांग रही सरकारी मदद इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि उन्हें सरकार से ज्यादा मदद की जरूरत है। लेबर मिनिस्ट्री ने एंप्लॉयीज स्टेट इंश्योरेंस स्कीम के जरिए अनएंप्लॉयमेंट बेनिफिट बढ़ाने की योजना बनाई है, लेकिन इंडस्ट्री का कहना है कि जितनी बड़ी समस्या है, उसका समाधान इस कदम से शायद न हो सके। कानूनी आधार है कोई! इंडस्ट्री यह सवाल भी कर रही है कि सरकार के निर्देशों का कोई कानूनी आधार है भी या नहीं। उदाहरण के लिए, डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट वेतन भुगतान जारी रखने का कोई कानूनी आधार मुहैया नहीं कराता है। इसके साथ ही कामगारों के काम पर नहीं आने की समस्या भी जुड़ गई है। सरकार ने निर्देश दिया था कि वर्कर काम पर आए या न आए, उसका वेतन भुगतान नहीं रुकना चाहिए। कुछ प्रॉडक्ट कैटिगरीज में लेबर शॉर्टेज से जल्द ही सप्लाई की तंगी की स्थिति बन सकती है। मिलेगी सरकार से मदद? ईटी ने इंडस्ट्री के बड़े अधिकारियों, उद्यमियों, एमएसएमई के मालिकों और कारोबारी संगठनों से इस स्टोरी के लिए बात की। उनमें से कई ने नाम न छापने की शर्त पर जवाब दिए। अधिकतर कंपनियां सरकार की इस राय से सहमत हैं कि इस संकट में कामगारों को तकलीफ नहीं होने देनी चाहिए, लेकिन वे यह सवाल भी कर रहे हैं कि वेलफेयर की यह जिम्मेदारी पूरी करने के लिए क्या उन्हें कैश फ्लो के मामले में अतिरिक्त सरकारी सहायता मिलेगी। 'बड़ा फिस्कल पैकेज' चाहिए ऐसोचैम के सेक्रटरी जनरल दीपक सूद ने कहा, 'वर्किंग कैपिटल पर प्रेशर बढ़ रहा है' और इंडस्ट्री उम्मीद कर रही है कि 'बैंक आरबीआई की ओर से दी गई रियायत से आगे बढ़कर मदद करें।' सूद ने कहा कि इंडस्ट्री एक 'बड़ा फिस्कल पैकेज' भी चाहती है। CII के प्रेसिडेंट विक्रम किर्लोस्कर ने एक बयान में कहा, 'यह बेहद अहम है कि हम छंटनी न करें' लेकिन लागत का मामला चिंता का विषय है। सैलरी देगी सरकार? कैश फ्लो की समस्या से जूझ रहीं छोटी कंपनियां ज्यादा साफगोई से बात कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश के बद्दी में प्लास्टिक टैंक बनाने का कारखाना चलाने वाले एस सिंगला ने कहा, 'सरकार कुछ भी कह सकती है। क्या वह सैलरी देगी? हम बहुत कम मार्जिन पर काम करते हैं। हमें 20 पर्सेंट वर्कफोर्स की छंटनी करनी पड़ेगी।'
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