नई दिल्ली कोरोना के कारण इकॉनमी की हालत पतली हो चुकी है। टैक्स से सरकार की होने वाली कमाई काफी घट गई है, जिसके कारण वह राज्यों को भी हिस्सा नहीं दे पा रही है। महाराष्ट्र, गुजरात जैसे बड़े राज्यों को छोड़ दें तो ज्यादातर राज्यों की कमाई का मुख्य जरिया केंद्र से मिलने वाला है। लॉकडाउन के कारण केंद्र के GST रेवेन्यू पर काफी असर हुआ है। ऐसे में उसने हाथ खड़े कर दिए हैं। केंद्र चाहता है कि राज्य बाजार से कर्ज उठाए रेवेन्यू के मसले पर राज्यों और केंद्र के बीच अब कानूनी लड़ाई शुरू हो चुकी है। केंद्र चाहता है कि राज्य सरकारें रेवेन्यू में आई कमी के लिए बाजार से कर्ज उठाएं। लेकिन केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह जिम्मेदारी केंद्र की है कि वह कर्ज उठाए और रेवेन्यू में आई गिरावट की भरपाई करे। 5 सालों तक रेवेन्यू लॉस की भरपाई का वादा GST को जब 2017 में लागू किया गया था तब राज्यों से वादा किया गया था कि केंद्र अगले पांच सालों तक रेवेन्यू में किसी तरह के नुकसान की भरपाई करेगा। राज्य सरकारें इसी बात का हवाला दे रही हैं। राज्यों की इस दलील पर अटॉर्नी जनरल ने कानूनी पक्ष सामने रखा है। GST काउंसिल का होगा फैसला अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह GST काउंसिल का फैसला होगा कि वह रेवेन्यू लॉस के लिए बाजार से कर्ज उठाने का फैसला करता है या दूसरे विकल्पों के बारे में सोच रहा है। के पास विकल्प है कि वह ज्यादा रेवेन्यू के लिए रेट्स में बदलाव करे, कंपेनसेशन सेस का रेट बढ़ाए या फिर उसमें ज्यादा चीजों को शामिल करे। इसके अलावा स्लैब में आमूल-चूल परिवर्तन करने का भी विचार दिया जा सकता है। राज्य फिलहाल बाजार से कर्ज उठाएं यह भी संभव है कि जीएसटी काउंसिल राज्यों को यह सुझाव दे कि फिलहाल वह बाजार से कर्ज उठाए और आने वाले दिनों में कंपेनसेशन से उसकी भरपाई करे। वित्त वर्ष 2019-20 में राज्यों को कंपेनसेशन के तौर पर 1.65 लाख करोड़ रुपये दिए गए थे, जबकि सेस से कमाई 95444 करोड़ रुपये रही थी।
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