चीन में डिपॉजिट इंश्योरेंस 58 लाख रुपये पर इंडिया में सिर्फ 1 लाख, क्यों बढ़नी चाहिए लिमिट?

विक्रांत सिंह PMC बैंक संकट के सामने आने के बाद बैंकों में डिपॉजिटर्स द्वारा जमा राशि की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं तेज हो गई हैं। जमापूंजी के डूबने से लोग हताश हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। कोई इलाज नहीं करवा पा रहा तो कोई बच्चों के स्कूल की फीस नहीं दे पा रहा। ऐसे में डिपॉजिट पर इंश्योरेंस की सीमा बढ़ाए जाने को लेकर विचार किया जा रहा है। आपको बता दें कि भारत में डिपॉजिट इंश्योंरेंस की लिमिट दुनियाभर में कम है, जिसमें 1-2 लाख की बढ़ोतरी भी नाकाफी होगी। 1993 में तय किए गए डिपॉडिट इंश्योरेंस में अब तक कोई बदलाव नहीं किया गया, जबकि महंगाई काफी गई है। आइए जानें, क्यों जरूरी है डिपॉजिट इंश्योरेंस बढ़ाए जाना, पहले जानिए PMC के खातेदारों की चिंताएं कितनी वाजिब हैं। 90 लाख जमा थे, पड़ा दिल का दौरा PMC बैंक के ग्राहकों की मुश्किलें दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं। हालत यह है कि खाते में पैसे होते हुए लोग अपने बच्चों की स्कूल फीस से लेकर इलाज तक का खर्च नहीं जुटा पा रहे हैं। अप्रैल में जेट एयरवेज का ऑपरेशन बंद होने के साथ 51 वर्षीय संजय गुलाटी की नौकरी भी चली गई। हालांकि वह नौकरी जाने के गम से ज्यादा टूटे नहीं, क्योंकि तब तक उन्होंने अपने बुरे समय के लिए करीब 90 लाख रुपये की बचत कर ली थी। इस पैसे को उन्होंने PMC बैंक में जमा कराया था। हालांकि जब 23 सितंबर को रिजर्व बैंक ने अचानक से PMC के कामकाज पर रोक लगा दी और ग्राहकों को अपने खाते से 6 महीने तक सिर्फ 1,000 रुपये ही निकालने का आदेश दिया तो, संजय एकदम टूट गए। उनके घरवालों ने बताया कि PMC बैंक के संकट में फंसने के बाद से वह काफी तनाव में रहते थे। पढ़ें : ग्राहकों की ओर से किए जाने वाले प्रदर्शनों में वह सबसे आगे चलने वालों में से थे। पिछले सोमवार को प्रदर्शन में हिस्सा लेने के बाद संजय जब घर लौटे तो उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई। इससे पहले संजय को कभी दिल में बीमारी की शिकायत नहीं थी। बैंक के साथ डूबा पैसा, तनाव में खुदकुशी संजय के अलावा PMC बैंक के ही एक और ग्राहक फत्तोमल पंजाबी की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई, जो बैंक में अपने जमा पैसों को लेकर बेहद चिंतित थे। वहीं, एक महिला डॉक्टर योगिता बिजलानी ने इसी तनाव के चलते कथित तौर पर खुदकुशी कर ली। पिछले शुक्रवार को मुंबई के मुलुंड में रहने वाले मुरलीधर धारा की इलाज के लिए बैंक से पैसे नहीं मिल पाने के चलते मौत हो गई। इन सभी के खातों में 80 लाख से ज्यादा रकम जमा थी। इन मामलों से दूसरे बैंकों के ग्राहक भी चिंतित हैं। 1968 में 5000 रुपये थी डिपॉजिट इंश्योंरेस लिमिट देश की संसद में करीब 58 साल पहले ऐसी ही चिंताओं को लेकर सवाल उठाए गए थे, जिसके बाद संसद ने डिपॉजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन ऐक्ट, 1961 नाम से एक कानून पास किया। इसके तहत डिपॉजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) नाम से एक संस्थान बनाया गया, जो बैंक के दिवालिया या डूबने की स्थिति में प्रत्येक जमाकर्ता को एक निश्चित रकम के वापसी की गारंटी देता है। 1968 में यह रकम 5,000 रुपये थी। 1993 में 1 लाख रुपये हुआ डिपॉजिट इंश्योरेंस इस रकम में समय-समय पर बढ़ोतरी होती गई और 1993 में इसे बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दिया गया। इसके बाद से आज तक इस रकम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसका मतलब यह है कि अगर आज आपका बैंक किसी कारणवश डूब जाए तो आपको 1 लाख रुपये तक ही वापस मिलने की गारंटी होगी। डिपॉजिट इंश्योरेंस भारत में है सबसे कम खास बात यह है कि भारतीय बैंकों में जमा पैसों पर मिलने वाला यह इंश्योरेंस पूरी दुनिया मे सबसे कम है। भारत की प्रति व्यक्ति आमदनी के लेवल वाले रूस में यह लिमिट 12 लाख और ब्राजील में 42 लाख रुपये के बराबर है। चीन प्रत्येक खाते पर करीब 58 लाख रुपये की गारंटी देता है। यहां तक कि कुछ सालों पहले दिवालिया घोषित हो चुका ग्रीस हर खाते पर करीब 80 लाख रुपये की गारंटी देता है। पढ़ेंः गारंटी बढ़ाने पर विचार कर रही है सरकार इस बीच ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि सरकार डिपॉजिट इंश्योरेंस कवर एक लाख से बढ़ाकर 2 से 5 लाख रुपये तक करने पर विचार कर रही है। स्टेट बैंक ने भी पिछले साल अपनी एक रिपोर्ट में इसे बढ़ाकर 2 लाख करने का सुझाव दिया था। कम से कम 15 लाख हो लिमिट ताकि.... यह बढ़ोतरी नाकाफी होगी क्योंकि 1993 के एक लाख रुपये को अगर सिर्फ महंगाई दर से जोड़ा जाए तो आज यह रकम 15 लाख रुपये से अधिक होती है। ऐसे में सरकार को डिपॉजिट इंश्योरेंस का 1 लाख से बढ़ाकर 2 लाख करने का कोई तुक नहीं रह जाता। सरकार को इस लिमिट को कम से कम इतना बढ़ाना चाहिए, जिससे भविष्य में संजय गुलाटी जैसे किसी और शख्स की जान न जाए।


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