नई दिल्ली की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर व्यापक है। हाल के दिनों में बेरोजगारी दर चार दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। इस मुद्दे पर तमाम सरकारें बेबस नजर आ रही हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों ने एक तरीका निकाला और बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने का ट्रेंड शुरू हुआ, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि यह सही नहीं है। बेरोजगारी के मुद्दे पर चार लोकसभा सांसद, जिसमें तीन बीजेपी के हैं वे चाहते हैं के लोकसभा में प्राइवेट मेंबर्स बिल पर चर्चा हो। इस बिल में बेरोजगार भारतीयों को भत्ता देने की बात कही गई है। बिल में दो तरह के भत्ते का जिक्र है। एक तरह का भत्ता हर बेरोजगार युवाओं को मिलेगा और दूसरी कैटिगरी में बेरोजगार पोस्ट ग्रैजुएट युवाओं को शामिल किया गया है। पिछली लोकसभा में भी इस तरह के तीन बिल को लाया गया था। अब राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में बेरोजगारी के मुद्दे पर राजनीतिक दलों की सोच पर गौर करेंगे तो बीजेपी, कांग्रेस, TRS, TDP, समाजवादी पार्टी समेत तमाम पार्टियां चुनाव से ठीक पहले बेरोजगारी भत्ते का वादा करती हैं और यह अब सभी पार्टियों के घोषणापत्र का हिस्सा बन चुका है। इस भत्ते से राजकोषीय खजाने पर हर महीने 1000-7000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ता है। केंद्र में 6.83 लाख पद खाली बेरोजगारी की समस्या को लेकर सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि भले ही केंद्र सरकार जॉब पैदा करने की बात करती हो, लेकिन केंद्र में 6.83 लाख पद खाली पड़े हैं। एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल आर्थिक सुस्ती के कारण 16 लाख नौकरी कम पैदा होंगे। भारत में सेल्फ-एम्प्लॉयड अभिशाप की तरह भारत में बेरोजगारी की तस्वीर बेहद भयानक है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 35 या उससे अधिक उम्र के लोगों में बेरोजगारी दर काफी कम है। वजह है कि नौकरी नहीं मिलने और सामाजिक सुरक्षा स्कीम्स के अभाव में रोजी रोटी चलाने के लिए कुछ न कुछ काम करना होगा और ये लोग सेल्फ-एम्प्लॉयड बन गए। मतलब सेल्फ-एम्प्लॉयड एक तरह से अभिशाप की तरह है। शायद यही वजह है कि प्राइवेट सेक्टर के सबसे बड़े एम्प्लॉयर क्वेस कॉर्प में डिलीवरी ब्वॉय के रूप में 3.85 लाख लड़के काम करते हैं।
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