क्रूड के हिसाब से कीमतें घटीं तो दिल्ली को बढ़ाना होगा वैट!

ईटी ब्यूरो, नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में एक ही झटके में 30% तक गिरावट के बाद अब सबकी नजर अगले हफ्ते घरेलू तेल कंपनियों के रुझान और सरकारी फैसले पर है। अगर रिटेल कीमतों में अच्छी-खासी कटौती हुई तो राज्य स्तर पर कीमत और राजस्व को लेकर भी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है। दिल्ली और हरियाणा में रेवेन्यू न्यूट्रल वैट सिस्टम लागू होने के चलते दिल्ली सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं और उसे मजबूरन वैट दरों में इजाफा करना होगा। इंडस्ट्री खासकर ट्रांसपोर्टर पेट्रोल और डीजल के दाम 13 से 15 रुपये लीटर तक घटाने की मांग करने लगे हैं। हालांकि आशंका जताई जा रही है कि 2014 की तरह सरकार इस बार भी व्यापार संतुलन और राजस्व को ही तवज्जो देगी और एक्साइज ड्यूटी में इजाफा भी कर सकती है। ऐसे में राज्यों की ओर से भी राजस्व नुकसान से बचने के लिए वैट बढ़ोतरी का नया दौर शुरू हो सकता है। ऐसा हुआ तो दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के बीच कीमतों में बड़ा अंतर पैदा होगा। यूपी में पेट्रोल पर वैट करीब 27% या 16.74 रुपये प्रति लीटर में से जो भी अधिक हो लगता है। हरियाणा सरकार ने भी दिसंबर 2018 से यही ऐड वेलोरम प्रणाली अपना ली है। ऐसे में तेल कीमतों में तेजी या गिरावट से दोनों के राजस्व पर कोई खास असर नहीं पड़ता है, लेकिन दिल्ली में सेल्स वैल्यू पर तय प्रतिशत रेट से वैट चार्ज होने के चलते काफी अंतर आ जाता है। दिल्ली सरकार के कुल राजस्व में पेट्रोल और डीजल से वैट की हिस्सेदारी करीब 10% है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक अगर पेट्रोल और डीजल के दाम घटते हैं तो राज्य सरकार को वैट के मद में काफी नुकसान होगा और उसके पास वैट बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। ऑल इंडिया पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अजय बंसल ने कहा कि एक्साइज और वैट में इजाफा आम ग्राहकों के साथ न्याय नहीं होगा। उन्होंने बताया कि ऐड वेलोरम व्यवस्था के चलते पहले ही दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के बीच कीमतों में अंतर से व्यापार असंतुलन बढ़ा है। इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (IFTRT) के कोऑर्डिनेटर एस पी सिंह ने कहा कि सरकार को डीजल के दाम 15 रुपये प्रति लीटर घटाने चाहिए, जिसकी ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री को सख्त जरूरत है। साथ ही टायर कीमतों में भी कमी आनी चाहिए। डीजल और टायर दोनों ट्रांसपोर्ट ऑपरेटर्स के वैरिएबल कॉस्ट में 90% हिस्सेदारी रखते हैं। लंबे समय से मंदी झेल रही इस इंडस्ट्री को कटौती की सख्त जरूरत है। पिछले साल ट्रांसपोर्टर डीजल कीमतों को लेकर आंदोलनरत रहे थे और तेल को जीएसटी में शामिल करने की मांग भी करते रहे हैं। 'कच्चे तेल की खपत में दशक की पहली वार्षिक गिरावट' कोरोना वायरस के चलते आर्थिक गतिविधियों के अस्तव्यस्त होने से कच्चे तेल के वार्षिक वैश्विक उपभोग में गिरावट आने का अनुमान है। यह एक दशक से भी अधिक समय में पहली वार्षिक गिरावट होगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की सोमवार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सामान्य स्थिति में कच्चे तेल की वर्तमान मांग में औसतन 11 लाख बैरल की दैनिक कमी आने का अनुमान है। इससे कच्चे तेल के उत्पादन में भी दैनिक 90,000 बैरल की कमी हो सकती है। एजेंसी का यह अनुमान इस मान्यता पर है कि चीन कोरोना वायरस के प्रसार पर इस महीने अंकुश लगा लेगा जबकि दूसरी जगहों पर संकम्रण को सीमित करने के उपायों का तेल की मांग पर असर कम होगा।


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