शांतनु नंदन शर्मा, नई दिल्ली पहली दिसंबर से देशभर में राष्ट्रीय राजमार्गों और कई स्टेट पर भी ऑटोमेटेड प्री-पेड डिवाइस के जरिए टोल देना अनिवार्य हो जाएगा। टोल बैरियर पर इस टैग के जरिए ऑटोमैटिक तरीके से पेमेंट हो जाएगा। इससे जाम घटेगा। यह रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) टैग आपकी गाड़ी की विंडस्क्रीन पर लगाया जा सकता है। यह आपके बैंक अकाउंट या नैशनल हाइवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पेमेंट वॉलिट से जुड़ा होगा। टोल से आप जब गुजरेंगे तो आपको एक टेक्स्ट मेसेज मिलेगा, जिसमें काटी गई रकम की जानकारी होगी। FASTag का उपयोग फ्यूल बिल चुकाने में भी हो सकता है। जल्द ही इसके जरिए पार्किंग फीस चुकाने का इंतजाम किया जाएगा। कई लोगों के लिए FASTag नई चीज नहीं हैं। कमर्शल गाड़ियों पर इन्हें लगाया गया है। 2016 के बाद बनाई गई सभी कारों में भी ये हैं। इस तरह करीब 62 लाख गाड़ियों में इन्हें लगाया जा चुका है। अभी 25-30 करोड़ रुपये के 11 लाख FASTag ट्रांजैक्शन रोज हो रहे हैं। NHAI के अनुसार, यह टोटल टोल वॉल्यूम का करीब 40 प्रतिशत है। इस टैग की लागत 25 रुपये है। यह बैंकों, टोल बूथों पर मिलता है। इसे ऑनलाइन भी खरीदा जा सकता है। इस डिवाइस से हालांकि प्रिवेसी से जुड़ी चिंता भी उभरी है। यह टैग मोबाइल फोन और गाड़ी के रजिस्ट्रेशन नंबर से लिंक होगा। इससे आपके सफर के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इससे कानून-व्यवस्था संभालने वाली एजेंसियों को तो मदद मिलेगी, लेकिन दुरुपयोग और गैरकानूनी निगरानी का जोखिम भी है। इस प्रॉजेक्ट पर काम करने वाली IHMCL के सीएमडी और NHAI के मेंबर (फाइनेंस) आशीष शर्मा ने कहा, 'डिजिटल पेमेंट करने पर भी आपको ट्रैक किया जा सकता है। FASTag भी इससे अलग नहीं है।' उन्होंने कहा कि यह सिस्टम निगरानी के बजाय सहूलियत के लिए बनाया गया है। दिल्ली से काम करने वाले साइबर सिक्यॉरिटी ऐनलिस्ट सुबिमल भट्टाचार्जी का मानना है कि FASTag डेटा के दुरुपयोग का चांस कम है, हालांकि थर्ड पार्टीज भी इसे एक्सेस कर सकेंगी। उन्होंने कहा, 'थर्ड पार्टीज पर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2008 लागू होगा। इसके तहत नियमों का उल्लंघन करने पर सिविल या क्रिमिनिल प्रोविजंस लागू हो सकते हैं। आपराधिक दृष्टि से दुरुपयोग करने पर जेल की सजा भी हो सकती है।' जीएसटी काउंसिल ने भी FASTag को अपने ई-वे बिल मैकेनिज्म से 1 अप्रैल 2020 से जोड़ने पर सहमति जता दी है। इससे ट्रकों की आवाजाही पर नजर रहेगी और राजस्व का नुकसान रोका जा सकेगा क्योंकि एक ई-वे बिल पर ट्रक कई ट्रिप नहीं लगा पाएंगे। FASTag का कॉन्सेप्ट सबसे पहले 2010 में इंफोसिस के को-फाउंडर नंदन नीलेकणि की अध्यक्षता वाली समिति ने दिया था। उसके दो साल बाद इंडियन हाइवेज मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड को यह प्रोजेक्ट लागू करने का जिम्मा दिया गया। FASTag को अनिवार्य करने पर शुरुआती कुछ दिनों में हो सकता है कि कई लोगों को इसकी जानकारी न हो, लिहाजा इसके चलते अव्यवस्था से बचने के लिए बिना FASTag वाली गाड़ियों के लिए कुछ समय तक एक लेन ओपन रखने की योजना है। हालांकि उन्हें दोगुना टोल चुकाना होगा।
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