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सौम्या भट्टाचार्य उत्तर भारत में टियर-3 इंजिनियरिंग कॉलेज से ग्रैजुएट होने के बाद शालिनी त्यागी को कोडिंग करने की नौकरी मिल गई। उनकी तनख्वाह सालाना 3 लाख रुपये थी। शालिनी को एक दिन लिंक्डइन पर एक लर्निंग स्टार्टअप के बारे में पता चला। वह ऐप उनकी सैलरी 500 पर्सेंट तक बढ़ाने का दावा कर रहा था। पहले तो उन्हें यह दावा खोखला लगा, लेकिन कोर्स के लिए उसकी शर्तों को देखकर उन्होंने भरोसा करने का फैसला किया। इसके लिए शालिनी को अग्रिम भुगतान नहीं करना था। कोर्स के लिए सिर्फ एक बार फीस अदा करनी थी और वह भी कम से कम 15 लाख सालाना की नौकरी लगने के बाद। सैलरी में 1000% का हाइक त्यागी ने स्क्रीनिंग टेस्ट दिया और वे पेस्टो मॉड्यूल में भर्ती हो गईं। यह मॉड्यूल तीन महीने का था। इसमें प्रोग्रामिंग लैंग्वेज जावास्क्रिप्ट सिखाई जाती है। इसे वेब आधारित ऐप डिवेलप करने में यूज किया जाता है। मॉड्यूल पूरा होते ही एक अमेरिकी कंपनी में रिमोट वर्कर के तौर पर शालिनी की नौकरी लग गई। वह भारत में बैठे-बैठे ही कंपनी के लिए कोडिंग करती थीं और सैलरी थी 35 लाख रुपये सालाना। तीन महीने के ट्रेनिंग प्रोग्राम से उन्हें सैलरी में सीधा 1,000 पर्सेंट की हाइक मिली। शालिनी की कहानी नए और तेजी से बढ़ते अपस्किलिंग ट्रेंड- इनकम शेयरिंग अग्रीमेंट की शुरुआती सक्सेस स्टोरीज में से एक है। इस तरह के स्किलिंग प्रोग्राम नौकरी लगने के बाद ही आपसे फीस लेते हैं। आमतौर पर इन प्रोग्राम्स की न्यूनतम आय सीमा होती है। यानी आपको एक तय सीमा से अधिक सैलरी ही मिलती है। पेस्टो भारत में इस अवधारणा को आगे ले जा रही है। कंपनी सॉफ्टवेयर इंजिनियर्स के लिए दिल्ली में तीन महीने का बूट कैम्प आयोजित करती है। वह ट्रेनी को वैश्विक मानकों और मांग के आधार पर कोर और सॉफ्ट स्किल्स में ट्रेनिंग देती है। इससे कम अनुभवी इंजिनियर भी विश्वस्तरीय कोडर बन जाते हैं। ट्रेनिंग से उन्हें प्रॉडक्ट की अच्छी समझ मिलती है। साथ ही संस्था के कामकाज का तरीका और आधुनिक वैश्विक वर्कफोर्स की अन्य जरूरतों को समझने में भी मदद मिलती है। अगर उन्हें कम से कम 15 लाख सालाना की नौकरी नहीं मिलती तो उनसे कोई फीस नहीं ली जाती। अगर उनकी सैलरी इससे होती है तो उन्हें तीन साल तक ग्रॉस सैलरी का 17 पर्सेंट कंपनी को देना होता है। इसे कॉलेज ड्रॉपआउट आयुष जायसवाल और कैलिफोर्निया के एंड्रयू लिनफुट (27) ने शुरू किया था। भारत में बेरोजगारी भारत के इंजिनियरिंग कॉलेजों से हर साल 4,00,000 सॉफ्टवेयर इंजिनियर निकलते हैं। इनमें से ज्यादातर को सॉफ्टवेयर कंपनियों में नौकरी नहीं मिल पाती है। प्री-हायरिंग असेसमेंट फर्म एस्पायरिंग माइंड्स ने मार्च में नेशनल एंप्लॉयबिलिटी नामक रिपोर्ट छापी थी। इसमें बताया गया था कि 80 पर्सेंट से अधिक भारतीय इंजिनियर्स नॉलेज इकॉनमी में हायरिंग के लिहाज से सही नहीं हैं। जायसवाल ने कहा, 'इंजिनियर्स की नौकरी एक चुनौती है। जिस रफ्तार से तकनीक बदल रही है, उस रफ्तार से शिक्षा में बदलाव नहीं हुआ है। जो इंजिनियर लगातार नहीं सीख रहा है, जॉब मार्केट में उसकी वैल्यू भी घट रही है।' स्किल को बढ़ावा देने वाले इस ऐप में निवेशक भी दिलचस्पी ले रहे हैं। मई 2019 में वेंचर कैपिटल फर्म मैट्रिक्स पार्टनर्स ने पेस्टो में निवेश किया था। हालांकि उसने कंपनी में कितना निवेश किया था यह राशि अघोषित है।
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