7000 करोड़ के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मिशन पर नीति आयोग और मिनिस्ट्री में रार

सुरभि अग्रवाल/योगिमा सेठ, नई दिल्ली सरकार के थिंक टैंक के 7,000 करोड़ रुपये के (AI) मिशन को लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड IT मिनिस्ट्री ने ऐतराज जताया है। इस महीने की शुरुआत में हुई एक मीटिंग में मिनिस्ट्री ने कहा था कि नीति आयोग की योजना और मिनिस्ट्री की ओर से AI को लेकर किए जा रहे कार्यों में कई चीजें एक जैसी हैं। इस समस्या को सुलझाने के लिए उसने फाइनैंस मिनिस्ट्री से हस्तक्षेप करने को कहा गया था। हालांकि, नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटी से कहा कि यह एक मिनिस्ट्री का 'एकाधिकार' नहीं हो सकता और नीति आयोग अपने AI मिशन पर आगे बढ़ेगा। अधिकारी ने बताया कि नीति आयोग को इस प्रपोजल के लिए फाइनैंस मिनिस्ट्री की एक्सपेंडिचर फाइनैंस कमिटी (EFC) से अनुमति मिल गई है और अब इसे स्वीकृति के लिए कैबिनेट के सामने पेश किया जाएगा। मिनिस्ट्री-नीति आयोग की योजना में बहुत से काम एक जैसे उनका कहना था, 'यह एक डिपार्टमेंट का मुद्दा नहीं है। यह एक मिनिस्ट्री का एकाधिकार नहीं हो सकता। यह एक राष्ट्रीय अभियान होना चाहिए और सभी डिपार्टमेंट्स को मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाना चाहिए। इसके साथ ही यह सुनिश्चित होना चाहिए कि कार्य को दोहराया न जाए।' पिछले वर्ष के बजट में घोषणा की गई थी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के एरिया में रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट के लिए नीति आयोग एक योजना शुरू करेगा। एक सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया, 'इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड IT मिनिस्ट्री ने फाइनैंस मिनिस्ट्री से हस्तक्षेप कर कुछ मुद्दों को सुलझाने के लिए कहा है।' उन्होंने कहा कि मिनिस्ट्री और नीति आयोग की योजना में बहुत से काम एक जैसे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क नीति आयोग ने देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए एक इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क तैयार करने की योजना बनाई है। इसमें AIRAWAT नाम का क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म शामिल होगा। इस योजना में इंटेल, आईबीएम और एक्सेंचर जैसी बड़ी कंपनियों की मदद ली गई है। नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल के लिए ऐग्रिकल्चर, हेल्थकेयर, रिटेल, एजुकेशन जैसे एरिया की पहचान की है। इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड IT मिनिस्ट्री ने भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी रेगुलेटरी और तकनीकी चुनौतियों को समझने और इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की संभावना वाले एरिया की पहचान के लिए पिछले वर्ष चार कमेटियां बनाई थी। इन कमेटियों में सरकार, प्रीमियर एजुकेशन इंस्टीट्यूट्स और गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हैं।


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