विवाद से विश्वास योजना के दायरे में नहीं आएंगे संपत्ति, प्रतिभूति लेन-देन, जिंस सौदा कर के मामले

नयी दिल्ली, पांच मार्च (भाषा) संपत्ति कर, प्रतिभूति लेनदेन कर, जिंस सौदा कर और दो कंपनियों के बीच डिजिटल लेन-देन पर लगने वाले शुल्क (इक्वलाइजेशन लेवी) से जुड़े मामले प्रत्यक्ष कर संबंधी ‘ विवाद से विश्वास छूट योजना ’ के अंतर्गत नहीं आएंगे। इस बारे में बार-बार उठने वाले सवाल (एफएक्यू) के साथ उनके जवाब जारी करते हुए प्रत्यक्ष कर विभाग ने यह स्पष्ट किया है कि योजना के तहत नामित प्राधिकरण द्वारा घोषणा करने वालों को कर देनदारी के निर्धारण के बाद 15 दिन के भीतर विवादित कर जमा करना होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि घोषणाकर्ता ने अगर अपील के चरण में राशि का भुगतान किया है और वह योजना के तहत देय रकम से अधिक है तो वह पैसा वापस पाने का हकदार होगा। वैसे मामलों में जहां करदाताओं की अपील अपीलीय मंचों, उच्च न्यायालयें और उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं, उसके पास 100 प्रतिशत (तलाशी मामले में 125 प्रतिशत) कर का भुगतान कर विवाद निपटान का विकल्प होगा। उसे ब्याज और जुर्माने से छूट मिलेगी लेकिन इसके लिये शर्त है कि वह 31 मार्च तक भुगतान करे। अगर करदाता एक अप्रैल से 30 जून के बीच भुगतान करता है, देनदारी बढ़कर 110 प्रतिशत (तलाशी मामलों में 135 प्रतिशत) हो जाएगी। पुन: जहां बकाया केवल विवादित ब्याज या जुर्माने से संबंधित है, वहां 31 मार्च तक 25 प्रतिशत विवादित जुर्माना या ब्याज का भुगतान करना होगा। उसके बाद राशि को बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जाएगा। एफएक्यू में स्पष्ट किया गया है कि जिन मामलों में राजस्व विभाग अपील के लिये गया है, घोषणाकर्ता को 50 प्रतिशत विवादित कर (तलाशी मामलों में 62.5 प्रतिशत) और / या विवादित जुर्माने, ब्याज या शुल्क का 12.5 प्रतिशत 31 मार्च तक देना होगा। अगर भुगतान उसके बाद किया जाता है तो घोषणा करने वालों को विवादित कर का 55 प्रतिशत (तलाशी मामलों में 67.5 प्रतिशत) तथा / या विवादित जुर्माना, ब्याज या शुल्क का 15 प्रतिशत देना होगा। प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक को लोकसभा ने बुधवार को पारित किया। आयकर विभाग ने कहा, ‘‘विवाद से विश्वास पहल का मकसद लंबित आयकर मामलों की संख्या में कमी लाना, सरकार के लिये समय पर राजस्व सृजन और करदाताओं को मन की शांति देकर लाभ पहुंचाना है। इससे पैसे, संसाधन और समय की बचत होगी जो मुकदमा चलने से खर्च होते।’’ इस सवाल कि क्या यह संपत्ति कर, प्रतिभूति सौदा कर (एसटीटी), जिंस सौदा कर और दो कंपनियों के बीच डिजिटल लेन-देन पर लगने वाले शुल्क से जुड़े मामलों पर लागू होगी, एफएक्यू में कहा गया है, ‘‘नहीं। यह केवल आयकर से जुड़े विवाद के मामले में ही लागू होगा।’’ उल्लेखनीय है कि विभिन्न अदालतों, कर्ज वसूली न्यायाधिकरण, अपीलीय निकायों में प्रत्यक्ष कर से जुड़े 9.32 लाख करोड़ रुपये के 4.83 लाख मामले लंबित हैं। यह सरकार के 2018-19 में प्रत्यक्ष कर राजस्व का 82 प्रतिशत है।


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