नई दिल्ली भारत एशिया के 16 देशों के व्यापार समझौते, का हिस्सा नहीं बनेगा। इन देशों में चीन भी शामिल है। भारत ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित समझौते में उसकी तरफ से उठाए गए मुद्दों और आशंकाओं का ‘संतोषजनक समाधान’ नहीं निकाला गया है। इन देशों के साथ भारत का पहले ही बड़ा व्यापार घाटा है। वह इस समझौते में खासतौर पर चीन से संभावित आयात बढ़ने को लेकर अपने उद्योग और किसानों के लिए सुरक्षा की मांग कर रहा था। आइए विस्तार से जानें कि भारत की क्या चिंताएं हैं, जिनकी वजह से भारत इस समझौते से बाहर निकल गया। क्या है RCEP का उद्धेश्य? 1-RCEP (रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप) की कोशिश दुनिया का सबसे बड़ा ब्लॉक स्थापित करने की है, जिसमें 16 देश होंगे। 2-भारत, चीन, जापान, साउथ कोरिया और आसियान देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया और न्यू जीलैंड 2012 से इस पर बातचीत कर रहे हैं। 3-चर्चा के मुख्य बिंदुओं में 90% सामानों पर आयात शुल्क घटाए जाने या खत्म करना है। चीन के मामले में भारत 80% सामान पर आयात शुल्क शून्य करने के पक्ष में था। 4-इसके अलावा, सर्विस ट्रेड, निवेश बढ़ाना और वीजा नियमों को आसान बनाने पर विचार किया जा रहा था। पढ़ें: बाहर क्यों निकला भारत? 1- भारत को डर है कि चीन से आयात काफी बढ़ जाएगा, जिसमें अन्य RCEP देशों के जरिए सामान की री-रूटिंग शामिल होगी, इससे भारत के हितों की रक्षा नहीं हो पाएगी। 2- अन्य देश 2014 के आधार वर्ष को बदलने के पक्ष में नहीं हैं, जिससे लेटेस्ट व्यापार शुल्क रिफ्लेक्ट हो सके। 3- आयात में बेतहाशा वृद्धि को चेक करने के लिए संरक्षण के कोई मानक नहीं हैं। इससे घरेलू हितों को नुकसान पहुंचेगा, मेक इन इंडिया पर असर पड़ेगा। 4-नॉन-टैरिफ बैरियर्स पर कोई विश्वसनीय प्रतिबद्धता नहीं है। 5-सवाओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। पढ़ेंः नहीं मिला कोई संतोषजनक समाधान बता दें कि ऑफिशियल ब्रॉडकास्टर प्रसार भारती के एक ट्वीट के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक में RCEP सम्मेलन में अपने भाषण में कहा, ‘अभी समझौते का जो स्वरूप है, वह RCEP के सर्वसम्मत मार्गदर्शी सिद्धांतों और मूल भावना से मेल नहीं खाता।’ मोदी ने यह भी कहा, ‘इसमें भारत की चिंताओं और उसकी तरफ से उठाए गए मुद्दों का संतोषजनक समाधान पेश नहीं किया गया है। ऐसे में भारत का RCEP में शामिल होना संभव नहीं है।’ सरकार ने इस व्यापार समझौते से पीछे हटने का फैसला ऐसे समय में लिया है, जब देश में राजनीतिक स्तर पर इसका विरोध बढ़ रहा था और विपक्षी दल उसे घेरने की कोशिश कर रहे थे। 2020 में समझौते पर शुरू होगा काम 16 सदस्यों वाली रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP) के संयुक्त बयान में कहा गया कि 15 देश 2020 में इस समझौते के लिए औपचारिक स्तर पर काम शुरू करेंगे। इस बीच, उन मसलों को भी सुलझाने की कोशिश होगी, जिनकी तरफ भारत ने ध्यान दिलाया है। बैंकॉक से सोमवार देर शाम जारी बयान में कहा गया, ‘समझौते पर भारत का रुख इन मसलों के संतोषजनक समाधान से तय होगा।’ RCEP में असोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के 10 सदस्य देशों के अलावा, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, भारत और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इन देशों में दुनिया की आधी आबादी रहती है और ग्लोबल जीडीपी में उनका 30 प्रतिशत का योगदान है। अन्य देशों के पाले में गेंद RCEP सम्मेलन के बाद बैंकॉक में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय के सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह ने कहा, ‘भारत ने RCEP ऐग्रीमेंट का हिस्सा नहीं बनने के अपने निर्णय की जानकारी दे दी है। अभी जो स्थिति है, उसमें समझौते का हिस्सा नहीं बनना सही फैसला है।’ व्यापार मामलों के एक विशेषज्ञ ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘इस फैसले से भारत के पास अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय स्तर पर विवादित मसलों को सुलझाने की गुंजाइश बन गई है। अब गेंद अन्य देशों के पाले में है। अगर वे हमारी आशंकाएं दूर नहीं कर पाते तो हम इस समझौते का हिस्सा नहीं बनेंगे।’ RCEP के सदस्य देशों के साथ 105 अरब डॉलर का व्यापार घाटा भारत में उद्योगों और डेयरी फार्मर्स इस व्यापार समझौते का विरोध कर रहे थे। भारत का RCEP के सदस्य देशों के साथ 105 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है। इसमें से 54 अरब डॉलर का घाटा तो सिर्फ चीन के साथ है। ऐसी आशंकाएं जताई गई थीं कि समझौते में भारत के शामिल होने से चीन से यहां मैन्युफैक्चर्ड गुड्स और न्यूजीलैंड से डेयरी प्रॉडक्ट्स की डंपिंग होगी, जिससे घरेलू हितों को नुकसान पहुंचेगा। यह भी कहा जा रहा था कि समझौते में भारत के शामिल होने से ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी धक्का लगेगा। (TOI इनपुट्स के साथ)
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