इसी साल होगा एयर इंडिया, BPCL का डिसइन्वेस्टमेंट!

विशेष संवाददाता सरकार चालू वित्त के दौरान और का इसी साल कर देगी। इसके लिए विनिवेश कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा रहा है। सरकार अब बड़ी कंपनियों के विनिवेश करेगी, जरूरत पड़ी तो बड़ी कंपनियों को विनिवेश से जुड़े नियमों में भी बदलाव करेगी। सूत्रों के अनुसार इस वक्त सरकार को पैसे की जरूरत है, ऐसे में अब विनिवेश की प्रक्रिया को तेज किया जाएगा। इस बारे में बैठकों का दौर जारी है। वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये बैठकें हो रही हैं, विनिवेश कार्यक्रम की नई लिस्ट तैयार की जा रही है। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार इस बार सरकार की मंशा एयर इंडिया तथा बीपीसीएल को विनिवेश को किसी भी तरह से पूरा करना है। इस बारे में संबंधित मंत्रालयों से बातचीत जा रही है। खुलने के बाद इस बारे में प्रॉसेस तेज हो जाएगा। सरकार को उम्मीद है कि कुछ बड़ी कंपनियों के शेयर बेचने से उसको कम से कम एक लाख करोड़ रुपये की प्राप्ति तो हो जाएगी। लॉकडाउन में फंसा विनिवेश सरकार एयर इंडिया में 100 फीसदी शेयर बेचना चाहती है। कैबिनेट इस बारे में अपनी मंजूरी दे चुका है। सरकार इसके लिए शुरुआती बोली लगाने की आखिरी तारीख बढ़ाकर 30 अप्रैल की थी, मगर कोविड-19 संकट व लॉकडाउन के कारण प्रॉसेस आगे नहीं बढ़ पाया। इधर सूत्रों का कहना है कि कोविड -19 संकट के कारण एयर इंडिया के विनिवेश कार्यक्रम में जो देरी हुई है, उसकी भरपाई अब जल्द आने वाले समय में पूरी की जाएगी। कोशिश की जाएगी कि सबसे पहले एयर इंडिया के विनिवेश की प्रक्रिया का आगे बढ़ाया जाए। सरकार एयर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी के अलावा लो कॉस्ट एयरलाइन Express में भी अपनी 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस पर बड़ा कर्ज गौरतलब है कि एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस पर अभी कुल 60000 करोड़ रुपये का कर्ज है। बिड डॉक्यूमेंट के मुताबिक विनिवेश के दौरान एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस पर सिर्फ 23,285 करोड़ रुपये का कर्ज होगा। यानी एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस खरीदने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी सिर्फ 23,285 करोड़ रुपये कर्ज चुकाने की रहेगी। बाकी कर्ज Air India Assets Holding Limited (AIAHL) की बैलेंस शीट में डाल दिया जाएगा। इधर सूत्रों का यह भी कहना है कि इस वक्त सरकारी खजाने की जो हालात है, उसमें एयर इंडिया को ज्यादा समय तक चलाया नहीं जा सकता। अगर अगले छह महीनों में खरीदार नहीं मिला तो इसे बंद करने की नौबत आ सकती है। इसका मतलब है कि सरकार को किसी भी हालत में छह माह के भीतर इसका विनिवेश करना ही होगा। में सरकार की 53% की हिस्सेदारी बीपीसीएल में सरकार की कुल हिस्सेदारी 53.29 फीसदी है, सरकार इस पूरी हिस्सेदारी को बेचना चाहती है। बीपीसीएल में बिडिंग में हिस्सा लेने वाली कंपनी के पास कम से कम 10 बिलियन डॉलर का नेटवर्थ कि अनिवार्यता होगी। अब सरकार बीपीसीएल की विनिवेश में तेजी लाएगी। जल्द ही इसकी कमान प्राइवेट कंपनियों को सौंपी जाएगी। इससे सरकार पर से इस कंपनी के मैनेजमेंट का बोझ हट जाएगा।


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