आरबीआई से विरल आचार्य के हटने से बदलेगा मौद्रिक नीति समिति का तौर-तरीका!

मुंबई ने का डेप्युटी गवर्नर पद तय कार्यकाल से पहले ही छोड़ने का कर दिया है। उनके हटने के साथ ही देश की मौद्रिक नीतियां बनाने में विदेशी विश्वविद्यालयों से पढ़े परंपरागत सोच वाले अर्थशास्त्रियों का दबदबा भी खत्म हो सकता है। आचार्य से पहले और ने केंद्र सरकार से सुर-ताल न मिलने पर आरबीआई से किनारा किया था। उनके कार्यकाल के दौरान बैंकिंग सिस्टम से बैड लोन की सफाई के कड़े कदम उठाए गए थे। साथ ही इन्फ्लेशन को काबू में करने के नए आइडिया पेश किए गए थे। उन्होंने आरबीआई की स्वायत्तता के लिए भी आवाज उठाई थी। न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रफेसर रहे आचार्य आरबीआई के सबसे युवा डेप्युटी गवर्नर बने थे। फाइनैंशल मार्केट्स और मॉनेटरी पॉलिसी के मामले में वह कंजर्वेटिव नजरिए के हिमायती रहे हैं। मार्केट्स को लग रहा है कि अब मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी के काम का तौर-तरीका बदल सकता है। नोमुरा सिक्यॉरिटीज की सोनल वर्मा ने कहा, 'एमपीसी का कंपोजिशन अब ज्यादा नरम होता जाएगा क्योंकि आचार्य पॉलिसी के मामले में ज्यादा आक्रामक रुख वाले सिरे की ओर थे।' उन्होंने कहा, 'पात्रा का रुख सबको पता है। वहीं संजीव सान्याल पूंजी जुटाने की लागत कम करने की वकालत कर चुके हैं। आने वाले दिनों में दूसरे कैंडिडेट्स पर चर्चा की जा सकती है।' अटकलें लग रही हैं कि रोड्स स्कॉलर संजीव सान्याल को आचार्य की जगह पर लाया जा सकता है। वह फिलहाल फाइनैंस मिनिस्ट्री में प्रिंसिपल इकनॉमिक अडवाइजर हैं। आरबीआई के कंटिजेंसी रिजर्व पर सरकार के हाथ डालने और खराब माली हालत वाले सरकारी बैंकों से नरमी से पेश आने को लेकर जब आरबीआई और सरकार में विवाद चल रहा था, तब आरबीआई के रोल का बचाव करने के लिए आचार्य खुलकर सामने आए थे। आचार्य ने अर्जेंटीना के सेंट्रल बैंक का पैसा सरकार को ट्रांसफर किए जाने के विवाद में वहां के सेंट्रल बैंक के चीफ के इस्तीफा देने, तुर्की के संकट और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के कदमों की वहां के राष्ट्रपति के सार्वजनिक तौर पर आलोचना करने का हवाला देकर कहा था कि आरबीआई की स्वायत्तता पर आंच आने के घातक परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा था कि सरकारें निर्णय लेने में सीमित समय सीमा वाली सोच रखती हैं जो राजनीतिक सोच-विचार पर आधारित होती है जबकि केंद्रीय बैंक को लंबे समय की सोच लेकर चलना होता है। उन्होंने एक अलग पेमेंट्स रेग्युलेटर बनाने की सरकारी योजना का विरोध किया था और कहा था कि इससे पूरा पेमेंट्स सिस्टम कमजोर हो जाएगा। आचार्य ने कहा था, 'जब सरकार केंद्रीय बैंक की नीतियों को कमजोर करने का प्रयास करती हुई और ऐसी नरमी के लिए केंद्रीय बैंक पर दबाव डालती दिखती है तो बैंक और प्राइवेट सेक्टर अपने मतलब की नीतियों के लिए लॉबीइंग करने में ज्यादा समय लगाते हैं। इससे सामूहिक हित पर आंच आती है।'


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