आजादी मार्चः विपक्षी एकजुटता ने बढ़ाई इमरान की सिरदर्दी, जनता ने माना कश्मीर नहीं अर्थव्यवस्था बड़ा मुद्दा

इस्लामाबाद पाकिस्तान में आजादी मार्च का नेतृत्व कर रहे जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) के नेता फजलुर रहमान ने प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्तीफे के लिए दो दिन का वक्त दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार मिलिटरी के इशारे पर चल रही है और देश में अघोषित मार्शल लॉ लागू कर दिया गया है। उन्होंने शुक्रवार को जनसभा में कहा कि 'संस्थाओं' को नहीं बल्कि केवल पाकिस्तान के लोगों को इस देश पर शासन करने का अधिकार है। इमरान को इस्तीफा देने और राष्ट्रीय प्रतिष्ठानों द्वारा इस सरकार का समर्थन बंद करने के लिए वह दो दिन की मोहलत दे रहे हैं। विपक्षी एकजुटता से बढ़ी चिंता रहमान ने 27 अक्टूबर को अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के साथ दक्षिणी सिंध प्रांत से 'आजादी मार्च' शुरू किया था जो गुरुवार को इस्लामाबाद पहुंचा। इस प्रदर्शन में प्रमुख पार्टियां जैसे नवाज शरीफ की पीएमएल-एन और आसिफ जरदारी की पीपीपी भी हिस्सा ले रही है। पीएमएल-एन के अध्यक्ष शाहबाज शरीफ ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, 'समय आ गया है कि इस फर्जी सरकार से मुक्ति मिले। हम इमरान खान नियाजी को तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक कि पाकिस्तान उनसे मुक्त नहीं हो जाता।' 2018 आम चुनाव के बाद बड़ा प्रदर्शन इमरान खान के अगस्त 2018 में सत्ता में आने के बाद देश में यह सबसे बड़ा प्रदर्शन है और हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी इस्लामाबाद में जमे हुए हैं। रहमान ने कहा, '25 जुलाई का चुनाव फर्जी है। हम न तो उसके नतीजों को स्वीकार करते हैं और न ही उस सरकार को जो उस चुनाव के बाद आई। पिछले एक साल से यह सरकार है लेकिन अब हम इसे और अधिक नहीं चाहते।' रहमान ने समर्थकों से अपील की कि वे इमरान के इस्तीफे तक इस्लामाबाद में जमे रहें। कौन हैं फजलुर रहमान कट्टरपंथी देवबंदी ग्रुप के नेता रहमान 1989 में सलमान रश्दी की किताब 'द सैटनिक वर्सेस' के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए भी जाने जाते हैं। वह स्पेशल पार्लियामेंटरी कमिटी ऑन कश्मीर के चेयरमैन हैं। उनपर देश में कश्मीर के मुद्दे को कमतर दिखाने और खैबर पख्तूनख्वा के मसले को उजागर करने के आरोप लगते हैं। खैबर पख्तूनख्वा उनका गढ़ है। 2016 में उन्होंने लोगों का ध्यान एकबार तब खींचा जब उन्होंने कहा कि पाकिस्तान कश्मीर को लेकर ऑब्सेस्ड है, और इसके लिए खैबर पख्तूनख्वा को दांव पर लगाने को तैयार है। वह पाक आर्मी के भी कटु आलोचक हैं। कश्मीर नहीं, अर्थव्यवस्था बड़ा मुद्दा: सर्वे पाकिस्तान सरकार के लिए चिंता का विषय सिर्फ विपक्षियों का व्यापक प्रदर्शन ही नहीं है, बल्कि हाल में एक सर्वेक्षण के नतीजों ने भी इसकी चिंता बढ़ा दी है। इमरान खान भारत के खिलाफ कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा रहे हों, लेकिन उनके खुद के देश के नागरिक कश्मीर की जगह अर्थव्यवस्था को तरजीह दे रहे हैं। गैलप और गिलानी पाकिस्तानी ओपिनियन पोल के नतीजे दिखाते हैं कि जनता के बीच कश्मीर से बड़ी चिंता अर्थव्यवस्था है। पाक में महंगाई 11.4 प्रतिशत है, आर्थिक विकास दर के गिरकर 2.4 प्रतिशत पर आने का अनुमान है, जबकि राष्ट्रीय घाटा जीडीपी का 8.9 प्रतिशत है। पोल में लोगों से पूछा गया कि उन्हें देश की सबसे बड़ी समस्या क्या लगती है? इस पर 53 फीसदी लोगों ने महंगाई बताई। 23 प्रतिशत ने बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा माना और 4 प्रतिशत की नजर में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है। वहीं, सिर्फ 8 प्रतिशत लोगों की नजर में कश्मीर बड़ा मुद्दा है।


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