ईटी ब्यूरो, नई दिल्ली सेक्टर के लिए राहत के उपायों का सुझाव देने की खातिर बनाई गई सचिवों की समिति को भंग कर दिया गया है। इससे यह संकेत मिल रहा है कि टेलिकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम पेमेंट पर मिली दो वर्ष की छूट के अलावा कोई अन्य राहत मिलनी मुश्किल है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'टेलिकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम से जुड़े पेमेंट के लिए दो वर्षों के मोराटोरियम से 42,000 करोड़ रुपये की राहत मिली है।' उन्होंने कहा कि इससे अधिक कुछ उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि टेलिकॉम सेक्टर को राहत के सुझावों के लिए बनाई गई कमिटी भंग कर दी गई है। यह पूछने पर कि क्या 1.47 लाख करोड़ रुपये की अजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की बकाया रकम पर राहत देने के लिए कोई नया पैनल बनाया जाएगा, अधिकारी ने बताया, 'नहीं, यह सुप्रीम कोर्ट की ओर से परिभाषा वाला मामला है।' अधिकारी ने पावरग्रिड और रेलटेल जैसी सरकारी कंपनियों सहित पर फैसले से प्रभावित हुई नॉन-टेलिकॉम कंपनियों को किसी मदद की संभावना से भी इनकार किया। उन्होंने कहा, 'ये कंपनियां कोर्ट क्यों नहीं जातीं। अगर कोई बकाया रकम होती है तो उसके लिए अकाउंट्स में प्रोविजन करना होता है। यह उनकी वैधानिक जिम्मेदारी है।' कैबिनेट सेक्रटरी राजीव गाबा की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति के सुझावों पर सरकार ने पिछले सप्ताह टेलिकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम पेमेंट पर दो वर्ष की छूट दी थी। यह कदम कैश फ्लो की कमी से जूझ रही वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों को राहत देने के लिए उठाया गया था लेकिन सरकार ने लाइसेंस फीस के तौर पर टेलिकॉम कंपनियों की ओर से चुकाए जाने वाले 8 पर्सेंट AGR को नहीं घटाया था। वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल को तीन महीने से कम में 89,000 करोड़ रुपये की AGR की बकाया रकम का भुगतान करना है। इन कंपनियों ने बकाया रकम पर पेनल्टी और इंटरेस्ट की समीक्षा करने की मांग वाली पुनर्विचार याचिकाएं दायर की हैं। सेल्युलर ऑपरेटर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) के डायरेक्टर जनरल राजन मैथ्यूज ने कहा, 'हमें विश्वास है कि इसका यह मतलब नहीं है कि सरकार ने इंडस्ट्री को लंबी अवधि में राहत देने पर विचार करना बंद कर दिया है।' टेलिकॉम कंपनियों ने सरकार से टैक्स घटाने की भी मांग की है।
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