नई दिल्ली आज ( meeting on Monday) होने वाली है। उम्मीद की जा रही है कि ये बैठक हंगामेदार रहेगी। दरअसल, गैर-बीजेपी शासित राज्य क्षतिपूर्ति (GST compensation) के मुद्दे को लेकर केंद्र के साथ असहमत हैं। वहीं 21 भाजपा शासित राज्य और बाकी पार्टियां जो भाजपा का समर्थन करती हैं, उन्होंने सहमति जताई है। यहां लोगों को मन में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर जीएसटी काउंसिल को लेकर किस बात का हंगामा है? तो चलिए आपको बताते हैं पूरा मामला। केंद्र ने राज्यों को दिए हैं ये दो विकल्प केंद्र की तरफ से राज्यों को जीएसटी की क्षतिपूर्ति के लिए दो विकल्प दिए गए हैं। पहला ये है कि रिजर्व बैंक से 97 हजार करोड़ रुपये का कर्ज स्वीकार किया जाए, वहीं दूसरा विकल्प ये है कि बाजार से 2.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया जाए, जिसमें कोरोना महामारी की वजह से रेवेन्यू में हुआ 1.38 लाख करोड़ रुपये की कमी भी शामिल है। राज्यों को इनमें से कोई के विकल्प चुनना है। 21 राज्य हैं सहमत जो राज्य भाजपा शासित हैं या फिर जहां ऐसी पार्टी है जो भाजपा का समर्थन करती है, उन्होंने रिजर्व बैंक की ओर से जीएसटी की क्षतिपूर्ति के लिए दिए जा रहे 97 हजार करोड़ रुपये के प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताई है। हालांकि, ये राज्य भी कुछ नेगोशिएसन करने पर विचार कर रही हैं। वह रिजर्व बैंक की तरफ से दिए जा रहे कर्ज की समय सीमा 5 साल से बढ़ाते हुए जून 2022 से भी आगे बढ़वाने की सोच रहे हैं। ये राज्य हैं सहमत सहमति जताने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश हैं। 10 राज्यों ने जताई है असहमति अभी भी 10 ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने केंद्र की तरफ से दिए गए दो विकल्पों में से एक को भी नहीं चुना है। अगर ये राज्य एक भी विकल्प नहीं चुनते हैं तो उन्हें जून 2022 तक जीएसटी का मुआवजा पाने के लिए रुकना होगा। ये राज्य मांग कर रहे हैं इसस मामले में पीएम मोदी हस्तक्षेप करें। ये राज्य हैं असहमत केंद्र सरकार के दोनों विकल्पों से असहमत राज्यों में छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल हैं। फायदे और नुकसान भारतीय रिजर्व बैंक से 97 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लेने के विकल्प में प्रिंसिपल अमाउंट और उसका ब्याज दोनों ही कंपनसेशन सेस से पूरा होगा जबकि बाजार से 2.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेने की सूरत में ब्याज का बोझ राज्यों की ही झेलना होगा। कौन सा विकल्प चुना जाएगा? सवाल ये है कि कौन सा विकल्प चुना जाएगा। जीएसटी काउंसिल के कानून के मुताबिक कोई भी फैसला कम से कम तीन-चौथाई सदस्यों की सहमति से लिया जा सकता है। हालांकि, केंद्र के पास एक-तिहाई का बहुमत है और बाकी का राज्यों से मिल जाएगा।
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