पाकिस्तान: इस्‍लाम पर बहस के बाद अहमदी प्रफेसर को दोस्त ने गोलियों से भूना

पेशावर पाकिस्तान के एक मुस्लिम प्रफेसर की पेशावर में सोमवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई। अहमदी अल्पसंख्यक समुदाय के प्रफेसर नईम खटक की कार पर एक दूसरे प्रफेसर फारूक माद ने ओपन फायर कर दिया। पुलिस का कहना है कि इससे एक दिन पहले ही दोनों के बीच एक धार्मिक मुद्दे पर काफी गर्म बहस हो गई थी। माद ने खटक पर हमला उस वक्त किया जब वह कॉलेज जा रहे थे। इस घटना में आरोपी प्रफेसर की मदद एक गनमैन ने भी की। कार रोककर ओपन फायर पुलिस का कहना है कि खटक की हत्या प्रफेसर माद और एक और आदमी के साथ धार्मिक मुद्दे पर बहस के बाद हुई है। खटक गवर्नमेंट सुपीरियर साइंस कॉलेज में फैकल्टी मेंबर थे। उनके भाई की तहरीर पुलिस ने FIR दर्ज की है। FIR में खटक के भाई ने कहा है कि वह खटक के कॉलेज गए थे और फिर वहां से दोनों साथ में निकले। खटक गाड़ी में थे और भाई मोटरसाइकल पर। जब वह वजीरबाग से दोपहर करीब 1:30 बजे गुजर रहे थे, तभी मोटरसाइकल सवार दो लोगों ने खटक की गाड़ी रोकी और ओपन फायर करके भाग गए। खटक को पांच गोलियां लगीं और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। एक दिन पहले तीखी बहस खटक के भाई ने हत्या का आरोप यूनिवर्सिटी ऑफ अग्रीकल्चर के एक प्रफेसर पर लगाया है जो खटक के दोस्त थे। उनका कहना है कि एक दिन पहले धार्मिक मुद्दे पर दोनों की तीखी बहस हो गई थी। पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों की गवाही की मदद से आरोपियों की पहचान की है और उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश में लगी है। प्रफेसर के परिवार में पत्नी, दो बेटे और तीन बेटियां हैं। अहमदी समुदाय की सुरक्षा की मांग घटना के बाद पाकस्तान के अहमदी समुदाय के प्रवक्ता सलीमुद्दीन ने कहा है कि खटक ने जूलॉजी में अपनी डॉक्टरेट पूरी की थी और उन्हें अपने विश्वास की वजह से परेशानियां हो रही थीं। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि खटक को धमकियां मिल रही थीं। सलीम ने अपने समुदाय के लोगों की सुरक्षा की मांग की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार अहमदी समुदाय को सुरक्षा मुहैया कराने में असफल रही है। अहमदी बनते आए हैं निशाना प्रफेसर खटक जिस अहमदी समुदाय से आते थे उसे 19वीं सदी में मिर्जा गुलाम अहमद ने स्थापित किया था जिन्हें अनुयायी पैगंबर मानते थे। पाकिस्तान की संसद ने 1974 में अहमदियों को गैर-मुस्लिम करार दिया था। उन्होंने कई बार इस्लामिक कट्टरपंथियों का निशाना बनना पड़ा है जिसे लेकर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने निंदा भी की है। दो साल से बढ़े हैं हमले अहमदियों के घरों और प्रार्थनास्थलों पर सुन्नी उग्रवादी हमला कर देते हैं। पेशावर खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत की राजधानी है और यहां सुन्नी मुस्लिमों और कट्टरवादियों की भारी मौजूदगी है। पाकिस्तान में ईसाइयों-हिंदुओं समेत अल्पसंख्यकों पर हमले साल 2018 के बाद से बढ़ गए हैं जबकि इमरान खान सरकार अल्पसंख्यकों को मूलभूत अधिकार देने का आश्वासन देती आई है। पिछले महीनों में कई घटनाएं हाल के महीनों में पेशावर में ऐसी हिंसा की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। 29 जुलाई को ईशनिंदा के आरोप का सामना कर रहे शख्स की पेशावर में कोर्टरूम के सामने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बाद में पता चला था कि मृतक अहमदी समुदाय छोड़ चुका था। 12 अगस्त को अहमदी समुदाय के एक शख्स की पेशावर के दाबगारी गार्डन एरिया में हत्या कर दी गई थी। 9 सितंबर को लाठी-पत्थरों से लैस भीड़ ने पेशावर के बाहरी इलाके में एक घर को घेर लिया। भीड़ का आरोप था कि परिवार इलाके में अपना धर्म फैला रहा है। बाद में पुलिस परिवार को एक साफ-हाउस में लेकर गई।


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