इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए देसी तकनीक से बैटरी बना रही IOC, चार्ज भी नहीं करनी पड़ेगी

हिमांशी लोचब, नई दिल्ली पब्लिक सेक्टर की दिग्गज कंपनी इंडियन ऑइल कॉरपोरेशन (IOC) गाड़ियों में लगनेवाली ऐसी बैटरी का बना रही है जिसमें देसी मेटल्स का इस्तेमाल होगा। इससे इलेक्ट्रिक वीइकल्स में इस्तेमाल होनेवाली लिथियम आयन वाली बैटरी पर निर्भरता घटेगी, यह बात के चेयरमैन संजय सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि इन मेटल-एयर बैटरियों में इस्तेमाल होनेवाले आयरन, जिंक और एल्युमिनियम जैसे मेटल्स के ऑक्सिडाइजेशन से एनर्जी पैदा होगी। रिचार्ज नहीं, बस प्लेट बदलने होंगे उन्होंने कहा कि कंपनी जो बैटरी बना रही है, उन्हें रिचार्ज नहीं किया जा सकेगा। बैटरियों में फिर से पावर लाने के लिए इनके प्लेट्स बदलने होंगे। IOC का दावा है कि इन बैटरियों का इस्तेमाल करने पर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। सिंह ने कहा, ‘अगर किसी ग्राहक को जरूरतभर का पेट्रोल आसानी से मिलता है तो वह इस बात में नहीं उलझता कि पेट्रोल कैसे तैयार किया जाता है। इसी तरह, अगर वह किसी एनर्जी स्टेशन पर जाता है और उसकी बैटरी के मेटल प्लेट्स तीन मिनट में बदल दिए जाते हैं तो वह इधर-उधर की बातें नहीं सोचेगा।’ एक बार में 500 किमी का सफर सिंह ने बताया, ‘आयरन, जिंक और एल्युमिनियम वाली मेटल-एयर बैटरी में हाई एनर्जी डेंसिटी होती है। एक लिथियम आइन बैटरी से गाड़ी 300 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है, तो मेटल बैटरी लगी गाड़ी एक बार में 500 किलोमीटर तक जा सकती है।’ इस तकनीक की लागत कारोबार के आकार पर निर्भर करेगी। यह बात सही है कि इस तकनीक में बैटरी चार्ज करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं पड़ेगी, लेकिन इसमें प्लेट्स बदलने के बिजनेस के लिए नए कारोबारी मॉडल की दरकार होगी। 8 साल होगी बैटरी की लाइफ मेटल ऑक्साइड की एक खास बात यह है कि इसे फिर से मेटल में बदला जा सकता है, इसलिए इसका प्रॉसेस रिसाइकल वाला होगा। IOC के डायरेक्टर, रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट डॉ. एस एस वी रामकुमार ने कहा, ‘इसमें एयर कैथोड सहित बाकी बैटरी बची रहती है। इन्हें कम से कम 8 साल तक बदलने की जरूरत नहीं पड़ती और उसके बाद एयर कैथोड को पूरी तरह रिसाइकल किया जा सकता है।’ सेंट्रल पलूशन कंट्रोल बोर्ड ने 2016 की कंप्लायंस रिपोर्ट में माना था कि इन्वाइरॉनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के तहत बैटरीज (मैनेजमेंट ऐंड हैंडलिंग) रूल्स 2001 में लिथियम आयन बैटरी की रिसाइक्लिंग शामिल नहीं है। मेटल वाली बैटरी में प्रॉडक्शन और रिसाइकलिंग दोनों ही काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं। इससे बैटरी के आयात संबंधी चिंता दूर होगी जो पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर विकल्प है। सिंह ने कहा, ‘अगर हम देशभर में इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने जा रहे हैं तो हमें कच्चे माल के लिए विदेश पर आश्रित नहीं रहना चाहिए।’


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