एक पाउंड केसर की कीमत एक घोड़े के दाम के बराबर क्यों थी?

सुनील कुमार भारत में हजारों वर्षों से मसालों और जड़ी-बूटियों (जैसे काली मिर्च, दालचीनी, हल्दी, इलायची) का इस्तेमाल पाक कला में और बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है। करीब 7000 साल पहले यानी ग्रीक और रोमन सभ्यताओं से काफी पहले भारतीयों का मेसोपोटामिया, चीन, सुमेरिया, मिस्र और अरब के साथ व्यापार होता था, जिनमें खासतौर पर मसालों की मांग सबसे ज्यादा रहती थी। पहले भारतीय मसालों को अरब व्यापारी पश्चिमी देशों को पहुंचाते थे। इससे उन्हें भारी मुनाफा होता था। इसलिए वे मसालों का स्रोत जानबूझकर छिपाते थे। दुर्लभ थे मसाले अरब व्यापारी कहानियों का सहारा लेकर बताते थे कि उन्हें ये दुर्लभ मसाले कितनी मुश्किल से मिलते हैं। मसलन, दालचीनी जहरीले सांपों से भरी गुफा में पैदा होती है। मध्य युग के शुरुआती भाग (क्रूसेड से पहले) में यूरोप में एशियाई मसाले काफी महंगे थे। कुछ मसालों का भाव तो पैदावार वाली जगह से हजारों गुना अधिक था। एक पाउंड (0.453 ग्राम) का दाम एक घोड़े, एक पाउंड अदरक की कीमत भेड़ और दो पाउंड जावित्री का भाव गाय के बराबर होता था। एक पाउंड जायफल का दाम 7 मोटे बैलों के बराबर! जर्मनी के 1393 के प्राइस टेबल में एक पाउंड जायफल का दाम 7 मोटे बैलों के बराबर लिखा था। यहां तक कि एक बोरी काली मिर्च से जीते-जागते इन्सान को भी खरीदा जा सकता था। काली मिर्च के साथ कई अन्य मसालों और जड़ी बूटियों का अमूमन मुद्रा की तरह उपयोग होता था। एक वक्त तो समूचे यूरोप में काली मिर्च पैसे के विकल्प के रूप में मान्य थी। काली मिर्च के दानों को गिनकर इससे टैक्स, टोल और किराया चुकाया जाता था। यहां तक कि दुल्हन को दहेज के रूप में काली मिर्च दी जाती थी। एशिया के समृद्ध मसाला क्षेत्र पर एकाधिकार के लिए यूरोपीय देशों के बीच बड़ा खूनी संघर्ष भी हुआ। पर पुर्तगालियों का एकाधिकार 1498 में वास्को डी गामा केप ऑफ गुड होप रूट से भारत तक पहुंचे। इसी रास्ते से 1501 में एक पुर्तगाली दल भारत से मसाले लेकर यूरोप गया था। इसके बाद 16वीं शताब्दी के लंबे वक्त तक मसाले के व्यापार पर पुर्तगालियों का एकाधिकार था। इस अवधि में पुर्तगाली सरकार की आधी से अधिक आमदनी पश्चिमी अफ्रीकी सोने और भारतीय मसालों से होती थी। हालांकि, पुर्तगालियों का एकाधिकार लंबे वक्त तक कायम नहीं रहा और 17वीं शताब्दी के आते-आते व्यापार की बागडोर डच लोगों के हाथ में आ गई। उन्होंने यह बागडोर अंग्रेजों के हाथ में जाने तक दोनों हाथों से रकम बटोरी। हालांकि, अब मसालों की पैदावार कई देशों में होने लगी है। काली मिर्च उत्पादन काली मिर्च के उत्पादन के मामले में वियतनाम और श्रीलंका जैसे देश काफी आगे हैं। फिर भी भारतीय मसाले जर्मनी, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण अफ्रीका, त्रिनिदाद और टोबैगो और कैरेबियन द्वीप समूह सहित कई देशों में खान-पान के अभिन्न अंग हैं।


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