केवल नारे से नहीं चलेगा काम, डोकलाम के बाद चीन से दवा आयात 28% बढ़ा

नई दिल्ली जब कभी सीमा पर भारत का चीन से किसी तरह का विवाद होता है, #BoycottChina का नारा चारों तरफ से लगने लगता है। भारत आत्मनिर्भर बनेगा और चीन पर अपनी निर्भरता कम करेगा, इस तरह की बातें सरकार और इंडस्ट्री दोनों तरफ से की जाती हैं। हालांकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। कोरोना संकट काल (Coronavirus crisis) में दवा बहुत अहम है, लेकिन इस मामले में भी भारत चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर है और वक्त के साथ निर्भरता भी बढ़ती जा रही है। पिछले चार सालों में आयात में 28 पर्संट का उछाल वाणिज्य मंत्रालय के डेटा के मुताबिक, पिछले चार सालो में होने वाले फार्मासूटिकल प्रॉडक्ट्स (Pharmaceutical products) में 28 फीसदी की तेजी आई है। 2015-16 में भारत ने चीन से 947 करोड़ का आयात किया था जो 2019-20 में बढ़ कर 1150 करोड़ रुपये का हो गया। डोकलाम के समय भी लगा था चीन बहिष्कार का नारा करीब तीन साल पहले 2017 में डोकलाम () में इसी तरह चीन के साथ भारत का विवाद हुआ था। उस दौरान भी इसी तरह बातें की जा रही थीं कि एक्टिव फार्मासूटिकल इंग्रिडिएंट यानी API के मामले में भारत आत्मनिर्भर बनेगा और चीन पर निर्भरता कम करेगा। यह बात इंडस्ट्री और सरकार दोनों तरफ से की जा रही थी, लेकिन सच्चाई सामने है। पॉलिसी लागू करने में लगता है समय दवा निर्माताओं का कहना है कि चीन से API समेत अन्य फार्म प्रॉडक्ट का आयात करना बहुत सस्ता होता है। भारत में पॉलिसी तो बन जाती है, लेकिन उसे अमल में लाने में बहुत समय लग जाता है। ऐसे में चीन पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। गलवान घाटी घटना के बाद दोनों देश के व्यापारिक रिश्ते पर काफी दबाव है। हाल ही में सरकार ने इंडस्ट्री से कहा है कि वह चीन से आयात होने वाले गैर जरूरी और घटिया क्वॉलिटी के सामानों की लिस्ट तैयार करे, ताकि आयात बंद कर लोकल मैन्युफैक्चर्स को मौका मिल सके। 70 फीसदी से ज्यादा API आयात चीन से फार्मा इंडस्ट्री के मुताबिक, भारत 70 फीसदी API चीन से आयात करता है। एपीआई दवा तैयार करने के लिए स्टार्टिंग मटीरियल है। अगर चीन निर्यात बंद कर दे तो भारत एंटी-इन्फेक्टिव, एंटी कैंसर जैसी जरूरी दवा तैयार नहीं कर पाएगा। कुछ दवाइयां ऐसी हैं, जिनके लिए भारत 80-90 फीसदी तक चीन से एपीआई का आयात करता है।


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