राजीव देशपांडे/सिद्धार्थ, नई दिल्ली के वाइस चेयरमैन द्वारा इकॉनमी की हालत को लेकर की गई टिप्पणी ने सरकार को समय से पहले ही राहत का ऐलान करने को मजबूर कर दिया। शुक्रवार को वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने के लिए कई उपायों का ऐलान किया, जिनका ऐलान अगले सप्ताह के शुरुआत में किया जाना था। राजीव कुमार ने कहा था कि देश का वित्तीय तंत्र बड़े संकट से गुजर रहा है। हालांकि उन्होंने बाद में अपने बयान पर सफाई दी। राजीव कुमार ने कहा था कि बीते 70 वर्षों में देश का वित्तीय क्षेत्र इतने अविश्वास के दौर से कभी नहीं गुजरा, जितना अभी देखा जा रहा है, यह अप्रत्याशित है। उन्होंने कहा कि यह दौर लंबा नहीं चले, इसके लिए सरकार को कुछ ऐसा कदम उठाना होगा जिसे बिल्कुल लीक से हटकर हो। उन्होंने कहा था कि आज हालात ऐसे हैं कि कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा और कोई किसी को कर्ज देने को तैयार नहीं है। पढ़ें: सरकार आर्थिक पैकेज पहले ही तैयार कर रही थी, जो अंतिम चरण में था, उसे फाइनल टच दिया जा रहा था और अगले सप्ताह की शुरुआत में उसका ऐलान किया जाना था। राजीव कुमार की टिप्पणी के बाद सरकार पर दबाव बना और अचानक यह खबर फैल गई कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन मीडिया से मुखातिब होंगी। सीतारमन ने एक ब्रीफिंग दी, जो करीब 100 मिनट तक चली। इस ब्रीफिंग में उन्होंने कई बड़े ऐलान किए। पढ़ें, अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने के लिए कई ऐलान किए गए लेकिन टैक्स में कटौती को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई। यह इस बात का सख्त संदेश है कि सरकार में इस बात को लेकर सहमति नहीं बनी कि उद्योग जगत के कई कई सेक्टरों द्वारा मांगे गए स्टिमुलस का फायदा ग्राहकों को मिलेगा। बल्कि यह महसूस किया गया कि टैक्स कटौती जैसा कदम एक 'गैरजिम्मेदार इकनॉमिक्स' और दबाव में आई सरकार की कमजोरी का सिग्नल होगी। एक अधिकारी ने बताया, 'हमने हाउसिंग सेक्टर के लिए पहले ही टैक्स रेट में कटौती की थी। इससे सेक्टर पटरी पर नहीं लौटा। कुछ सेक्शन डर का माहौल बनाने की कोशिश में जुटे थे ताकि टैक्स छूट को लेकर सरकार पर भारी दबाव बनाया जा सके। सरकार ने महसूस किया कि कर्ज को आसान बनाना और ढांचागत मुद्दों पर विचार ज्यादा जरूरी है।' बजट में लगाए गए सरचार्ज से सबसे ज्यादा विरोध विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) कर रहे थे, लेकिन सरकार ने घरेलू पोर्टफोलियो निवेशकों के बारे में भी सोचा और इस स्तर पर छूट का ऐलान किया। हालाकि इस कदम से सरकार को 1400 करोड़ रुपये की आमदनी का नुकसान होगा। पैकेज का ऐलान करने से पहले हर सेक्टर की परेशानियों का विश्लेषण किया गया। सरकार ने पाया कि लोन देने को लेकर बैंकों का उतावलापन और एनबीएफसी संकट के चलते कई समस्याओं पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सुस्ती से जूझ रहे ऑटो सेक्टर को राहत देने के लिए कई उपायों की घोषणा की गई, लेकिन सरकार ने जीएसटी रेट में कटौती की मांग नहीं मानी। सरकार ने यह देखा कि किन स्तरों पर बूस्ट की जरूरत है, उसी के आधार पर फैसला लिया। खुदरा लोन, बैंकिंग प्रक्रिया और सरकारी खरीद पॉलिसी के स्तरों पर काम कर सुस्त इकॉनमी में मांग बढ़ाने का फैसला किया।
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