नई दिल्ली के उपाध्यक्ष का मानना है कि बीते 70 वर्षों में देश का वित्तीय क्षेत्र इतने अविश्वास के दौर से कभी नहीं गुजरा, जितना अभी देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह दौर लंबा नहीं चले, इसके लिए सरकार को कुछ ऐसा कदम उठाना होगा जिसे बिल्कुल अनोखा कहा जा सके। कुमार ने कहा कि अभी देश के की हालत यह है कि कोई भी, किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है। '70 में फाइनैंशल सिस्टम पर सबसे ज्यादा रिस्क' उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, 'कोई भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है... निजी क्षेत्र के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है, हर कोई नकदी लेकर बैठा है... आपको लीक से हटकर कुछ कदम उठाने की जरूरत है।' कुमार ने वित्तीय क्षेत्र में दबाव को अप्रत्याशित बताते हुए कहा कि किसी ने भी पिछले 70 साल में ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया जब पूरी वित्तीय प्रणाली में जोखिम हो। 'निजी कंपनियों की आशंकाओं को दूर करना होगा' नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा, 'सरकार को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जिससे निजी क्षेत्र की कंपनियों की आशंकाओं को दूर किया जा सके और वे निवेश के लिए प्रोत्साहित हों।' आर्थिक नरमी को लेकर चिंता के बीच उन्होंने यह बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि निजी निवेश तेजी से बढ़ने से भारत को मध्यम आय के दायरे से बाहर निकलने में मदद मिलेगी। इस बारे में विस्तार से बताते हुए कुमार ने कहा कि वित्तीय क्षेत्र में दबाव से निपटने और आर्थिक वृद्धि को गति के लिए केंद्रीय बजट में कुछ कदमों की घोषणा पहले ही की जा चुकी है। वित्त वर्ष 2018-19 में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत रही जो 5 साल का न्यूनतम स्तर है। मौजूदा संकट में यूपीए 2 की भूमिका वित्तीय क्षेत्र में दबाव से अर्थव्यवस्था में नरमी के बारे में बताते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि पूरी स्थिति 2009-14 के दौरान बिना सोचे-समझे दिए गए कर्ज का नतीजा है। इससे 2014 के बाद गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि फंसे कर्ज में वृद्धि से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है। इस कमी की भरपाई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने की। इनके कर्ज में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। एनबीएफसी कर्ज में इतनी वृद्धि का प्रबंधन नहीं कर सकती और इससे कुछ बड़ी इकाइयों में भुगतान असफलता की स्थिति उत्पन्न हुई। अंतत: इससे अर्थव्यवस्था में नरमी आयी। नोटबंदी, जीएसटी और IBC का असर कुमार ने कहा, 'नोटबंदी, जीएसटी और बैंकरप्ट्सी ऐंड इन्सॉल्वंसी कोड के कारण खेल की पूरी प्रकृति बदल गई। पहले 35 प्रतिशत नकदी घूम रही थी, यह अब बहुत कम हो गई है। इन सब कारणों से एक जटिल स्थिति बन गई है। इसका कोई आसान उत्तर नहीं है।' सरकार और उसके विभागों द्वारा विभिन्न सेवाओं के लिए भुगतान में देरी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह भी सुस्ती की एक वजह हो सकती है। प्रशासन प्रक्रिया को तेज करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है।
from Latest Business News in Hindi - बिज़नेस खबर, बिज़नेस समाचार, व्यवसाय न्यूज हिंदी में | Navbharat Times http://bit.ly/2NpArbX