सुस्त मांग से फीका पड़ा पारले का कारोबार, कंपनी कर सकती है 10000 छंटनियां

रत्ना भूषण, नई दिल्ली बिस्किट बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी पारले प्रॉडक्ट्स को कन्जंपशन में सुस्ती आने के कारण 8,000-10,000 लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है। कंपनी के कैटिगरी हेड मयंक शाह ने बताया, 'हमने 100 रुपये प्रति किलो या उससे कम कीमत वाले बिस्किट पर GST घटाने की मांग की है। ये आमतौर पर 5 रुपये या कम के पैक में बिकते हैं। हालांकि अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो हमें अपनी फैक्टरियों में काम करने वाले 8,000-10,000 लोगों को निकालना पड़ेगा। सेल्स घटने से हमें भारी नुकसान हो रहा है।' पारले-जी, मोनैको और मैरी बिस्किट बनाने वाली पारले की सेल्स 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है। 10 प्लांट ऑपरेट करने वाली इस कंपनी में एक लाख एंप्लॉयी काम करते हैं। पारले के पास 125 थर्ड पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं। कंपनी की सेल्स का आधा से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण बाजारों से आता है। GST लागू होने से पहले 100 रुपये प्रति किलो से कम कीमत वाले बिस्किट पर 12 पर्सेंट टैक्स लगाया जाता था। कंपनियों को उम्मीद थी कि प्रीमियम बिस्किट के लिए 12 पर्सेंट और सस्ते बिस्किट के लिए 5 पर्सेंट का GST रेट तय किया जाएगा। हालांकि, सरकार ने दो साल पहले जब GST लागू किया तो सभी बिस्किटों को 18 पर्सेंट स्लैब में डाला गया। इसके चलते कंपनियों को इनके दाम बढ़ाने पड़े, जिसका असर सेल्स पर पड़ा। शाह ने बताया कि पारले को भी 5 पर्सेंट दाम बढ़ाना पड़ा, जिससे सेल्स में गिरावट आई। देश की एक अन्य बड़ी बिस्किट और डेयरी प्रॉडक्ट्स कंपनी ब्रिटानिया के मैनेजिंग डायरेक्टर वरुण बेरी ने पिछले हफ्ते कहा था कि कन्ज्यूमर 5 रुपये के बिस्किट पैकेट भी खरीदने में कतरा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि वे 5 रुपये के भी प्रॉडक्ट्स खरीदने पहले दो बार सोच रहे हैं, जिससे वित्तीय समस्या की गंभीरता का पता चलता है। बेरी ने कहा था, 'हमारी ग्रोथ सिर्फ छह पर्सेंट हुई है। मार्केट ग्रोथ हमसे भी सुस्त है।' नुस्ली वाडिया की कंपनी ब्रिटानिया का साल-दर-साल का शुद्ध लाभ जून तिमाही में 3.5 पर्सेंट घटकर 249 करोड़ रुपये रहा। पारले के शाह ने बताया कि कन्जंपशन घटने के कारण रिटेलर्स भी प्रॉडक्ट्स लेने से पीछे हट रहे हैं। उन्होंने कहा, 'बिस्किट पर अधिक GST लागू होने से कन्ज्यूमर डिमांड घटी है। सरकार इसके लिए कोई कदम नहीं उठा रही, जिससे हालात बदतर हो गए हैं। हमारे कई ऐसे बिस्किट हैं जिन्हें मिड और लो-इनकम ग्रुप के उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। वे हमारे जैसे ब्रांड्स के कोर कंज्यूमर हैं। हमें उम्मीद है कि सरकार डिमांड को पटरी पर वापस लाने के लिए टैक्स स्लैब घटाएगी।' कम कीमत वाले बिस्किट कम मार्जिन पर बेचे जाते हैं। पिछले महीने मार्केट रिसर्च कंपनी नीलसन ने FMCG सेक्टर के लिए 2019 का अपना ग्रोथ अनुमान 11-12 पर्सेंट से घटाकर 9-10 पर्सेंट कर दिया था। कंपनी ने ग्रामीण क्षेत्रों की डिमांड सुस्त होने के कारण ऐसा किया। नीलसन ने कहा था कि सुस्ती का असर सभी फूड और नॉन-फूड कैटेगरी पर पड़ रहा है। इसका सबसे बुरा असर नमकीन, बिस्किट, मसाले, साबुन और पैकेट वाली चाय पर देखने को मिल रहा है।


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